भारत में सामाजिक विघटन (Social Disorganization in India)


भारत में सामाजिक विघटन (Social Disorganization in India)

सामाजिक विघटन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें समाज के सदस्यों के पारस्परिक संबंध टूट जाते हैं और उनके व्यवहार को नियंत्रित करने वाले नियमों का प्रभाव समाप्त होने लगता है|

थॉमस एवं नैनिकी के अनुसार सामाजिक विघटन समूह के सदस्यों पर से समाज के मौजूदा नियमों के प्रभाव का कम होना है|

भारत में सामाजिक विघटन को निम्न बिंदुओं में देखा जा सकता है –

(1) बेकारी, वैश्यावृत्ति, मद्यपान, अपराध,
बाल-अपराध, हड़ताल, प्रदर्शन, घेराव, तोड़फोड़ आदि में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है|

(2) जातिवाद, भाषावाद, सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद आदि समाज अस्वीकृत भावनाओं में वृद्धि हुई है|

(3) नैतिकता एवं राष्ट्रीय चरित्र में गिरावट आई है|

(4) सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में पतन हुआ है|

(5) भारतीय समाज एवं संस्कृति में अनेक पश्चिमी मूल्यों का समावेश हो गया है जिससे भारतीय अपनी मूल संस्कृति से विचलित होने लगे हैं|

(6) हमारा देश विश्व गुरू होने के आधार अाध्यात्मवाद से हटकर दिन-प्रतिदिन के भौतिकवाद की तरफ बढ़ता जा रहा है|

भारत में सामाजिक विघटन के कारण (Causes of Social Disorganization in India ) –

(1) तीब्र सामाजिक परिवर्तन|

(2) पश्चिमी सामाजिक मूल्यों का प्रभाव|

(3) क्षेत्रवाद|

(4) गरीबी|

(5) बेरोजगारी|

(6) नैतिक पतन|

(7) सांप्रदायिक संघर्ष|

(8) अधिक जनसंख्या|

(9) भ्रष्टाचार|

भारत में सामाजिक विघटन रोकने के उपाय –

(1) सभी युवाओं के लिए योग्यतानुसार रोजगार का प्रबन्ध करना चाहिए|

(2) बच्चों को इतना संस्कारी बनाना चाहिए कि पश्चिमी मूल्यों से विचलित न हो सकें|

(3) भ्रष्टाचार पर शून्य सहिष्णुता की नीति अपनानी चाहिए|

(4) युवाओं के असंतोष का उचित समय पर लोकतांत्रिक समाधान करना चाहिए|

(5) अपराध, वेश्यावृत्ति, बाल-अपराध आदि रोकने के लिए सार्थक कदम उठाना चाहिए|


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