भारतीय समाज में स्त्रियाँ (Women in Indian Society)


भारतीय समाज में स्त्रियाँ (Women in Indian Society)

Women in Indian Society, भारतीय समाज में विभिन्न कालों में स्त्रियों की प्रस्थिति भिन्न-भिन्न रही है| वैदिक काल में स्त्री की समाज में प्रस्थिति सम्मानजनक थी| स्त्री के बिना पुरुष कोई धार्मिक संस्कार यथा यज्ञ संपन्न नहीं कर सकता था, इसलिए उसे धर्मपत्नी समझा जाता था| स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार था| स्त्रियों को जीवन साथी चुनने की स्वतंत्रता थी, जिसके लिए स्वयंवर आयोजित होते थे| सती प्रथा का प्रचलन अवश्य था लेकिन विधवा पुनर्विवाह पर कोई रोक नहीं था| स्त्रियाँ पति धर्म पालन एवं सतित्व की रक्षा के प्रति सजग थी| उस समय का आदर्श वाक्य ‘जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं’, नारियों के उच्च प्रस्थिति को दर्शाता है|

उत्तर वैदिक काल में नारी की प्रस्थिति में गिरावट आयी| नारी शिक्षा का विरोध, बाल विवाह, बहु पत्नी विवाह का प्रचलन बढ़ गया| विधवा विवाह पर रोक लगा दी गयी| समाज में स्त्रियों पर अनेक प्रतिबंध लग जानेे से वैदिक काल की तुलना में उनके सामाजिक प्रस्थिति में गिरावट दर्ज की गयी|

मध्यकाल मुख्यत: मुगल शासकों का समय था| इस काल में हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा के नाम पर स्त्रियों पर अनेक कठोर प्रतिबंध लगा दिए गये| स्त्री शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया गया| सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक संहिता में स्त्री को पुरुष के अधीन कर दिया गया| इस काल में बाल विवाह,पर्दा प्रथा, सती प्रथा आदि के कारण स्त्रियों की स्थिति पतनोन्मुख हो गयी|

ब्रिटिश शासनकाल में स्त्रियों की स्थिति सुधारने के अनेक कदम उठाए गए ,जो निम्न हैं –

(1) वुड डिस्पैच (1854) द्वारा स्त्री शिक्षा का समर्थन किया गया|

(2) सैडलर योजना (1917) के अंतर्गत महिला में सुधार एवं शिक्षा के प्रसार पर बल दिया गया|

सामाजिक क्षेत्र में –

(3) विलियम वेंटिक के शासनकाल में 1829 में सती प्रथा निरोधक अधिनियम लागू किया गया| ( राजा राममोहन राय के विशेष प्रयास से, जिन्होंने 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना भी की थी)

(4) लार्ड कैनिंग के शासनकाल में 1856 में हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम द्वारा विधवाओं को पुनर्विवाह का अधिकार दिया गया| ( ईश्वरचंद्र विद्यासागर के विशेष प्रयास से)

(5) 1929 में बाल विवाह निरोधक अधिनियम पारित किया गया| हरविलास शारदा ने इसके लिए विशेष प्रयास किया था| इसलिए इसे शारदा एक्ट के नाम से भी जाना जाता है|

(6) 1937 में हिंदू स्त्रियों को संपत्ति में अधिकार प्रदान किया गया|

आधुनिक भारत में स्त्रियों की समस्याएँ (Problems of Women in Modern India)

(1) साक्षरता एवं शिक्षा का कम होना|

(2) समान कार्य के लिए पुरुषों के समान वेतन न मिलना|

(3) नारी भ्रूण हत्या|

(4) दहेज एवं दहेज हत्या|

(5) घरेलू मारपीट एवं उत्पीड़न|

(6) छेड़छाड़ एवं बलात्कार|

(7) वेश्यावृत्ति|

(8) समाज में बदनामी के डर से बहुत सारे अन्याय को छुपाना या उसकी शिकायत न कर पाना, जो आजकल चल रहे # मी टू (# Me Too) कैंपेन से ज्ञात होता है|

स्वतंत्रता के बाद भारत में अनेक कानून बनाए गए जिसमें स्त्रियों को अन्याय एवं शोषण से बचाने तथा पुरुषों के समान प्रस्थिति लाने का प्रयास किया गया है, जो निम्न है-

(1) संविधान के अनुच्छेद 15 (3) के अंतर्गत राज्य को स्त्रियों के लिए विशेष उपबंध करने का अधिकार दिया गया है, जिसका उपयोग कर उनके लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है|

(2) अनुछेद 39 में स्त्रियों को समान कार्य के लिए समान वेतन के प्रयास पर बल दिया गया है|

(3) हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956) द्वारा स्त्रियों को संपत्ति में अधिकार दिया गया|

(4) हिंदू विवाह अधिनियम (1955) द्वारा विशेष परिस्थिति में तलाक की व्यवस्था की गयी|

(5) दहेज निरोधक अधिनियम (1961) के द्वारा दहेज लेना एवं देना दोनों को अपराध घोषित किया गया|

(6) 1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन किया गया जो महिलाओं के लिए संवैधानिक तथा अन्य कानून का परीक्षण एवं लागू करने की सिफारिश करती है|

(7) 2005 में घरेलू हिंसा के विरुद्ध कठोर कानून बना कर स्त्रियों को संरक्षण प्रदान किया गया|

(8) महिलाओं का अभद्र चित्र छापने से रोकने के लिए संसद ने 1986 में स्त्री अशिष्ट रूपण प्रतिषेध अधिनियम (The Indecent Representation of Women (Prohibition Act, 1986) पारित किया|

(9) महिला भ्रूण हत्या को रोकने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने 1994 में गर्भ में लिंग पहचान को रोकने के लिए पी. एन. डी. टी.एक्ट (Pre-Natal Diagnostic Techniques (Regulation and Prevention of Misuse) पारित किया गया| जिसे 2003 से लागू कर दिया गया|

Objective Type Questions


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