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भारत में धार्मिक समस्याएँ (Religious problems in India)


भारत एक बहुधर्मी देश है एवं अपनी विविधता में एकता जैसे उद्देश्य के लिए जाना जाता है| भारतीय संविधान में भी पंथनिरपेक्ष शब्द का उल्लेख है, जिसका तात्पर्य राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है साथ ही यह सभी धर्मों को समान महत्त्व देता है|लेकिन धार्मिक समस्याएँ तब उत्पन्न होती है जब कुछ लोग संगठित रूप से प्रलोभन देकर या बल पूर्वक लोगों का धर्म परिवर्तन करवाते हैं| इसके अतिरिक्त दो धर्मों के मानने वाले लोगों के बीच के व्यक्तिगत झगड़े को धार्मिक स्वरूप प्रदान कर दिया जाता है| जिससे धार्मिक समस्याएँ उत्पन्न होती है| धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक लोगों में असुरक्षा की भावना रहती है जो उनमें पायी जाने वाली आक्रमकता के रूप में सामने आती है|

भारत में मुख्य रूप से हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी धार्मिक समूह के लोग पाये जाते हैं, जिनमें सभी धर्मों की कुछ न कुछ समस्यायें हैं| किंतु मुख्य मुद्दा हिंदू एवं मुस्लिम धर्म के बीच का है| दोनों समुदायों के बीच में झड़प एवं दंगा दिखायी देता हैं|

वास्तव में धर्म का तात्पर्य अलौकिक शक्ति में विश्वास है, जिसे व्यक्ति पूजा, कर्मकाण्ड, आदि के माध्यम से समर्पित करता है| धर्म मनुष्य के बौद्धिक एवं सामाजिक क्रियाओं को प्रभावित करता है| ऐसे प्रभाव को धर्म के अनुयायी अपने व्यक्तिगत एवं सामूहिक जीवन के विभिन्न पक्षों में विभिन्न तरीके से स्वीकार करता है|

समाजशास्त्र में धर्म सत्य है या नहीं, इस बात पर गौर नहीं किया जाता, बल्कि यह देखा जाता है कि इसे मानने वाले व्यक्तियों के सामूहिक जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है |

जॉनसन (Johnson) के अनुसार समाजशास्त्री इस बात में रुचि नहीं लेता कि परमात्मा का अस्तित्व है या नहीं, बल्कि इस बात में रुचि लेता है कि किस हद तक विभिन्न धर्मों के लोग इसे सच्चाई के रूप में स्वीकार करते हैं|

धर्म भारतीय संस्कृति का मूल है| विभिन्न परिस्थितियों में व्यक्ति के कर्तव्यों को धर्म कहा गया है| मैलिनॉस्की (Malinowski) ने धर्म को समाजशास्त्रीय एवं मनोवैज्ञानिक दोनों का घटना माना है| उनके अनुसार धर्म क्रिया की एक विधि के साथ आस्था की भी एक व्यवस्था है|

टायलर (Tylor) के अनुसार धर्म आध्यात्मिक शक्ति में विश्वास है

धर्म के प्रकार्य (Functions of Religion)

धर्म के प्रकार्य को निम्न बिंदुओं में देखा जा सकता है –

(1) सामूहिक प्रवृत्ति को प्रोत्साहन|

(2) दान देने के कार्य से मानव कल्याण|

(3) मानव व्यवहार पर नियंत्रण|

(4) समाज विरोधी प्रवृत्तियों पर नियंत्रण|

(5) सामाजिक एकबद्धता|

(6) अहिंसा एवं विश्व-बंधुत्व की भावना का विकास|

धर्म के दुष्प्रकार्य (Dysfunctions of Religion)

(1) अंधविश्वास एवं कट्टरता को प्रोत्साहन|

(2) धार्मिक शोषण एवं भेदभाव|

(3) कर्म की जगह भाग्यवाद को प्रोत्साहन|

(4) धर्म परिवर्तन की समस्या|

(5) सांप्रदायिक दंगे|

(6) घृणा एवं द्वेष का फैलाव|

(7) बहुधर्मी समाज में राष्ट्रीय एकता में बाधक|

(8) वैज्ञानिकता का विरोध|

(9) तार्किकता की जगह परम्पराओं को प्रोत्साहन देने से सामाजिक प्रगति में बाधक|


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