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लैंगिक असमानता या विषमता (Gender Inequality)


लैंगिक विषमता ( पढ़ेंअसमानता या विषमता क्या है ) का तात्पर्य जैवकीय या शारीरिक भिन्नता से नहीं बल्कि स्त्री-पुरुष के सामाजिक-सांस्कृतिक सम्बन्धों के स्तर पर स्त्रियों के साथ होने वाले भेदभाव से हैं| यह एक ऐसी समस्या है, जो मानवीय समाज के आरम्भिक काल से आज तक विद्यमान है|

अधिकारों एवं सुविधाओं के संदर्भ में स्त्री एवं पुरुष के बीच लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव को लैंगिक विषमता कहते हैं| उदाहरण के लिए कहीं स्त्रियोें को सम्पत्ति में बराबरी का हिस्सेदार नहीं माना गया है तो कहीं समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं दिया जाता है|

मनु स्मृति में लिखा गया है कि स्त्रियों को बचपन में पिता के संरक्षण में रहना चाहिए एवं जब विवाह हो तो उन्हें निश्चित रूप से पति के संरक्षण में, एवं बुढ़ापे अथवा विधवा की अवस्था में अपने पुत्र के संरक्षण में होना चाहिए| किसी भी परिस्थिति में उन्हें स्वयं स्वतंत्र रूप से रहने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए|

वस्तुतः कुछ संहिताओं में स्त्री के सम्मान या संरक्षण की बात कही गई है जो धीरे-धीरे भेदभाव के रूप में सामने आने लगा एवं स्त्रियों को पुरुष से निम्न समझा जाने लगा|

लिंग एवं जेंडर (Sex and Gender) में अंतर

लिंग का तात्पर्य जैवकीय विशेषताओं से है जो स्त्री एवं पुरुष को एक दूसरे से भिन्न करता है, जबकि जेंडर सामाजिक-सांस्कृतिक शब्द है जिसमें पुरुष एवं स्त्रियों को योग्यता या निर्योग्यता के आधार पर उच्चता एवं निम्नता में विभाजित किया जाता है एवं स्त्रियों को निम्न समझा जाता है| अत: मुद्दा लिंग असमानता का नहीं बल्कि जेंडर असमानता का है|

लैंगिक विषमता के कारण (Causes of gender inequality)

(1) सामाजिक क्षेत्र

परिवार में स्त्रियों की प्रस्थिति पुरुष से निम्न है| शिक्षा के लिए उन्हें घर से दूर जाने की इजाजत नहीं होती है, जिससे वे अपनी शिक्षा को बीच में ही छोड़ने को मजबूर है| विवाह के संदर्भ में भी स्त्रियों की सहमति नहीं ली जाती है, जो उनकी निम्न प्रस्थिति का कारण बनती है|

(2) आर्थिक क्षेत्र

आर्थिक क्षेत्र की विषमता में महिलाओं को पैतृक संपत्ति में कहीं सैद्धांतिक तो कहीं व्यावहारिक रूप से हिस्सेदार नहीं माना गया है| घर में किए जाने वाले कार्य को समाज उत्पादन कार्य का दर्जा नहीं देता है| केवल बाहरी कार्यों को ही श्रम माना जाता है| सामाजिक ढाँचे के कारण महिलाओं की पहुँच बाहरी कार्यों तक नहीं हो पाती है जिसके कारण श्रमशील एवं कुशल होने के बावजूद उन्हें आश्रित रहना पड़ता है|

(3) राजनीतिक क्षेत्र

राजनीति क्षेत्र में भी महिलाओं की स्थिति को पुरुष से निम्न समझा गया है| हाल के वर्षों में राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है लेकिन इसके लिए भी अधिकांशतः वे पुरुष पर ही निर्भर हैं| उदाहरण के लिए – ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के प्रधान बनने के बावजूद प्रधान-पति की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण है|

वस्तुतः आधुनिक समाज सैद्धांतिक रूप से चाहे जितना दावा कर ले लेकिन व्यावहारिक रूप से नारी की स्वाधीनता को समाज पुरुष के नजरिए से देखता है, जिसे नारी भ्रूण-हत्या एवं लिंगानुपात के गिरते स्तर में देखा जा सकता है|

लैंगिक विषमता (Gender Inequality) को दूर करने के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयास

(1) संविधान के अनुच्छेद 15 (3) के अंतर्गत राज्य को स्त्रियों के लिए विशेष उपबंध करने का अधिकार दिया गया है, जिसका उपयोग कर उनके लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है|

(2) अनुछेद 39 में स्त्रियों को समान कार्य के लिए समान वेतन के प्रयास पर बल दिया गया है|

(3) हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956) द्वारा स्त्रियों को संपत्ति में अधिकार दिया गया|

(4) हिंदू विवाह अधिनियम (1955) द्वारा विशेष परिस्थिति में तलाक की व्यवस्था की गयी| यह अधिकार पुरुषों के साथ स्त्रियों को भी है|

(5) दहेज निरोधक अधिनियम (1961) के द्वारा दहेज लेना एवं देना दोनों को अपराध घोषित किया गया|

(6) 1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन किया गया जो महिलाओं के लिए संवैधानिक तथा अन्य कानून का परीक्षण एवं लागू करने की सिफारिश करती है|

(7) 2005 में घरेलू हिंसा के विरुद्ध कठोर कानून बना कर स्त्रियों को संरक्षण प्रदान किया गया|

(8) महिलाओं का अभद्र चित्र छापने से रोकने के लिए संसद ने 1986 में स्त्री अशिष्ट रूपण प्रतिषेध अधिनियम (The Indecent Representation of Women (Prohibition Act, 1986) पारित किया|

(9) महिला भ्रूण हत्या को रोकने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने 1994 में गर्भ में लिंग पहचान को रोकने के लिए पी. एन. डी. टी.एक्ट (Pre-Natal Diagnostic Techniques (Regulation and Prevention of Misuse) पारित किया गया| जिसे 2003 से लागू कर दिया गया|


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