सामान्य अर्थों में धर्म या प्रजातीय भिन्नता को नृजातीयता (Ethnicity) समझ लिया जाता है| वास्तव में नृजातीयता एक भावना है| जब धर्म, भाषा, जाति, रंग, संस्कृति, क्षेत्र आदि के आधार पर कोई समूह एकजुट होकर अपनी भावना प्रदर्शित करे तो उसे नृजातियता कहते हैं| नृजातीय मनोवृत्ति, राष्ट्रीय मनोवृत्ति या हित से पृथक होती है|
नृजातीयता की भावना तब उत्पन्न होती है जब किसी क्षेत्र के लोग बाहरी लोगों की उपस्थिति के कारण अपने स्थानीय संसाधनों एवं अस्मिता पर संकट महसूस करने लगते हैं एवं स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए अति सुरक्षात्मक होने का प्रयास करते हैं| जो अलग क्षेत्र, राज्य या देश की माँग के रूप में सामने आता है|
नृजातीयता के कारणों में मुख्य रूप से गरीबी, अशिक्षा बेरोजगारी, पहचान संकट जैसी समस्याएँ होती हैं| इन्हीं समस्याओं के आधार पर भारत में कुछ नृजातीय समूह जैसे – विदर्भ, गोरखालैंड, बोडोलैंड आदि अपनी नृजातीय भावना को समय-समय पर प्रकट करते रहते हैं|
नृजातीय समस्याएँ
नृजातीयता से भारत में होने वाली समस्याओं को निम्न बिंदुओं में देखा जा सकता है –
(1) नृजातीयता के कारण एक राज्य के लोग दूसरे राज्यों को अपने क्षेत्र से बाहर करने का प्रयास करते हैं – उदाहरण के लिए उत्तर-पूर्वी राज्यों में एवं हाल ही में महाराष्ट्र एवं गुजरात में दूसरे प्रांत के लोगों के विरुद्ध की घटना में इसे देखा जा सकता है|
(2) नृजातीयता के कारण कुछ क्षेत्रीय लोग स्वयं को देश से अलग होने की भी आवाज उठाते हैं, जैसे कश्मीर के कुछ अलगाववादी संगठन|
(3) नृजातीयता के कारण अलग राज्यों की माँग उठने लगती है| हाल ही में आंध्र प्रदेश से अलग हुआ भारत का 29 राज्य तेलंगाना इसका उदाहरण है|