युवा अति-सक्रियता (Youth Activism)

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युवा अति-सक्रियता क्या है –

युवा अति-सक्रियता, युवाओं में परिस्थितियों से होने वाले असंतोष एवं तनाव का परिणाम होता है| ये परिस्थितियाँ सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षणिक कुछ भी हो सकती है|

समाज में युवा एक ऐसी जनसंख्या है जो सामान्यत: पारिवारिक एवं सामाजिक जिम्मेदारियों से मुक्त होता है| जोश एवं उमंग से भरपूर होता है, जिसके कारण किसी भी परिस्थिति से समझौता नहीं करना चाहता| ये परिस्थितियाँ सामाजिक मूल्यों, नये विचारों, रोजगार आदि से संबंधित कुछ भी हो सकता है| समस्याओं एवं परिस्थितियों से निपटने के लिए युवा आंदोलन, उग्र प्रदर्शन, विरोध, घेराव आदि के द्वारा अपने इरादों को प्रदर्शित करते हैं| इसे ही युवा अति-सक्रियता कहते हैं|

युवा अति-सक्रियता की विशेषताएँ (Characteristics of Youth Activism)

(1) यह सामूहिक प्रतिक्रिया होती है|

(2) इसमें लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए विचलित व्यवहार किया जाता है|

(3) यह समाज के लिए अप्रकार्यात्मक होता है|

(4) यह सामान्यत: परिवर्तन के लिए होता है|

(5) इसके परिणाम स्वरूप समाज अस्त-व्यस्त हो जाता है|

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युवा अति-सक्रियता के कारण

(1) साधन एवं साध्य में तालमेल का न होना –

प्रत्येक समाज अपने सदस्यों को सांस्कृतिक लक्ष्य एवं संस्थागत साधन उपलब्ध कराता है| लेकिन बदलती परिस्थितियों में कुछ लोग लक्ष्य को प्राप्त न कर पाने से साधन बदलना चाहते हैं, जिसकी समाज इजाजत नहीं देता| ऐसे में युवा असंतोष सामने आता है|

(2) दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली –

वर्तमान समय की शिक्षा प्रणाली का दायरा सामान्यतः रोजगार प्राप्त करने तक सीमित है| ऐसे में रोजगार न मिलने से युवाओं में इसका नकारात्मक प्रभाव दिखाई देता है|

(3) राजनीति का शिकार –

यूनिवर्सिटी एवं कॉलेजों में छात्रसंघ चुनाव होते हैं| जिसमें राजनीतिक दल से जुड़े उम्मीदवार भी होते हैं, जो सत्ता पक्ष एवं विपक्ष से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है, जिसका परिणाम युवा
अति-सक्रियता के रूप में सामने आता है|

(4) नैतिक शिक्षा का अभाव –

सामान्यत: शिक्षण संस्थाओं में नैतिक शिक्षा का अभाव देखा जाता है| जिससे युवाओं में व्यक्तिवादिता बढ़ने लगती है| परिवार में भी माँ-बाप अति-व्यस्तता के कारण बच्चों को उचित-अनुचित की शिक्षा नहीं दे पाते| जिससे युवा अति-सक्रियता दिखाई पड़ता है|

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(5) अंतर्पीढ़ीय अन्तराल –

युवाओं का अपने माँ-बाप या दादा-दादी की पीढ़ियों से ताल-मेल नहीं हो पाता, क्योंकि पहली पीढ़ी परम्पराओं को अधिक महत्त्व देती है, जबकि युवा पीढ़ी तेजी से बदलती सामाजिक परिस्थितियों के साथ रूढ़ियों को बदलना चाहती है| जिसकी इजाजत पूर्व की पीढ़ी नहीं देती| इससे युवा अति-सक्रियता की भावना सामने आती है| कभी-कभी तो माँ-बाप द्वारा बच्चे के अनुशासन के लिए उनके जीवन में किया गया उचित हस्तक्षेप भी युवाओं के अधिकारों के अतिक्रमण के रूप में देखा जाने लगता है|

युवा अति-सक्रियता को नियंत्रित करने के उपाय

(1) परिवार समाजीकरण की सबसे प्रमुख इकाई है| अतः प्रत्येक परिवार का यह दायित्व है कि वह अपने बच्चे को उचित-अनुचित, सही- गलत, देश-प्रेम, त्याग, नैतिकता आदि की शिक्षा अवश्य दे|

(2) प्रत्येक शैक्षणिक संस्थाओं में चाहे वह व्यावसायिक हो या अकादमिक, एक नैतिक शिक्षा का पाठ्यक्रम अवश्य शामिल किया जाना चाहिए|

(3) शिक्षकों की नियुक्ति एक निष्पक्ष आयोग के माध्यम से होनी चाहिए|

(4) युवाओं की समस्या का समय-समय पर यथोचित लोकतांत्रिक समाधान होना चाहिए|

(5) युवाओं को उनके शिक्षा के अनुसार रोजगार या स्वरोजगार सुनिश्चित होना चाहिए|

(6) बेहतर शिक्षा प्रणाली का विकास करना चाहिए|

(7) युवाओं की ऊर्जा को एक सकारात्मक एवं सही दिशा दिया जाना चाहिए|

(8) जो लोग युवाओं को गुमराह करते हैं, उन पर कठोर एवं दंडात्मक कार्यवाही होनी चाहिए|

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