B.A. 1st year Model Paper 2022: Sociology

 B.A. 1st year Model Paper 2022: Sociology

          नई शिक्षा नीति – 2020

 (मेजर/माइनर )

                समाजशास्त्र

Time: Three Hours /               / Maximum Marks: 75

Note: Attempt all Sections as per instruction.

सभी खण्डों के उत्तर निर्देशानुसार दीजिए|

Section-A / खण्ड-अ

Note: All questions are compulsory. Give answer of each in about 50 words.

सभी प्रश्न अनिवार्य हैं| प्रत्येक का उत्तर 50 शब्दों में दीजिए|

                                                            2 X 10 = 20

1.   (i)  समाज को क्यों अमूर्त कहा जाता है?

       (ii) संस्था की विशेषताएँ?

       (iii) जन्म का परिवार एवं जन्म देने का परिवार?

       (iv) प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष सहयोग?

       (v) प्रदत्त एवं अर्जित प्रस्थिति?

       (vi) प्राथमिक समूह?

        (vii) विवाह के उद्देश्य?

        (viii) प्रबोधन किसे कहते हैं?

    (IX) समुदाय किसे कहते हैं|

        (X) धर्म?

                                  Section- B / खण्ड- ब

Note: Attempt any five questions from the following. Answer to each question should be in about 200 words. Each question carries equal marks.

निम्नलिखित में से किन्ही पाँच प्रश्नों के उत्तर दीजिए| प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 200 शब्दों में हो| प्रत्येक प्रश्न के अंक समान हैं|                                                               7 X 5 = 35

2. मानव समाज तथा पशु समाज में अंतर स्पष्ट करें?

3. समुदाय की परिभाषा दीजिए? समुदाय तथा समिति में अंतर स्पष्ट करें?

4. सन्दर्भ समूह को स्पष्ट करें?

5. समूह किसे कहते हैं? सामाजिक समूह के विभिन्न चरणों की विवेचना कीजिए?

6. एक विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र की प्रकृति की विवेचना कीजिए?

7. अन्तः विवाह एवं बहिर्विवाह को स्पष्ट करें?

8. समाज के प्रकार?

9. प्रस्थिति को परिभाषित करें? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें?

                           Section-C / खण्ड-स

Note: Attempt any two questions. Give answer of each question in about 500 words.

किन्ही दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए| प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 500 शब्दों में हो|

                                                2 X 10 = 20

10. स्वरूपात्मक सम्प्रदाय एवं समन्वयात्मक सम्प्रदाय के सन्दर्भ में समाजशास्त्र के अध्ययन  क्षेत्र को रेखांकित करें?

11. परिवार को परिभाषित करें? परिवार के प्रकारों का विस्तृत वर्णन करें?

12. सामाजिक स्तरीकरण को परिभाषित करें? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख सिद्धांतो की व्याख्या करें?

13. विवाह किसे कहते हैं? विवाह के उद्देश्य बताइए? विवाह के प्रकारों की व्याख्या करें?

                                                   खण्ड-अ

1.   (i)  समाज को क्यों अमूर्त कहा जाता है?

उत्तर- समाज सामाजिक संबंधो से मिलकर बना है| लोगों के बीच जब अंतःक्रिया की बारंबारता होती है तो सामाजिक संबंधों का निर्माण होता है| ये सम्बन्ध मित्रवत, शत्रुवत, लगावपूर्ण या गैर-लगावपूर्ण हो सकते हैं| चूँकि ये सम्बन्ध हमें दिखायी नहीं देते, इसलिए समाज को अमूर्त कहा जाता है|

(ii) संस्था की विशेषताएँ?

उत्तर- संस्था नियमों एवं कार्य प्रणालियों की एक व्यवस्था है| इसकी विशेषताओं को निम्न विन्दुओं में देखा जा सकता है-

1. संस्था रीतिरिवाज एवं प्रणालियों की एक व्यवस्था है|

2. सुस्पष्ट उद्देश्य होतें हैं|

3. संस्थाएं संस्कृति की वाहक होती हैं|

4. अमूर्त प्रकृति होती है|

5. स्थायित्व होता है|

(iii) जन्म का परिवार एवं जन्म देने का परिवार?

उत्तर- यह लॉएड वार्नर की अवधारणा है| जिस परिवार में व्यक्ति का जन्म होता है, उसे उसका जन्म का परिवार कहा जाता है| विवाह के बाद एक व्यक्ति जिस परिवार का निर्माण करता है, उसे उस व्यक्ति का जनन का परिवार या जन्म देने का परिवार कहा जाता है|

(iv) प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष सहयोग?

उत्तर- प्रत्यक्ष सहयोग- इसे चेतन सहयोग भी कहा जाता है| इस सहयोग में दो या दो से अधिक व्यक्ति आपस में मिल-जुलकर कार्य करते हैं| जैसे- साथ-साथ खेलना या कार्य करना|

अप्रत्यक्ष सहयोग- इसके अंतर्गत सहयोग करने वाले व्यक्तियों का उद्देश्य तो सामान रहता है लेकिन कार्य अलग-अलग रहता है| जैसे- ऑफिस में अधिकारी एवं क्लर्क|

(v) प्रदत्त एवं अर्जित प्रस्थिति?

उत्तर- प्रदत्त प्रस्थिति- यह प्रस्थिति व्यक्ति को जन्म लेते ही प्राप्त हो जाती है| इस प्रस्थिति के लिए व्यक्ति को स्वयं कोई प्रयास नहीं करना पड़ता है| जैसे- राजा का बेटा राजकुमार कहलाता है|

अर्जित प्रस्थिति- इसके लिए व्यक्ति को अनिवार्यतः प्रस्थिति के अनुरूप कम या अधिक भूमिका निभाना पड़ता है| जैसे- संपत्ति, शिक्षा, व्यवसाय आदि|

(vi) प्राथमिक समूह?

उत्तर- प्राथमिक समूह -प्राथमिक समूह एक छोटा सामाजिक समूह है जिसके सदस्य व्यक्तिगत एवं करीबी संबंध में बँधे रहते हैं , जैसे – परिवार ,बचपन के मित्र आदि |

कूले के अनुसार प्राथमिक समूह से मेरा तात्पर्य वे समूह जिसमें आमने-सामने के घनिष्ठ सहयोग हो, वे बहुत मायने में प्राथमिक हैं लेकिन मुख्य रूप से सामाजिक प्रकृति एवं व्यक्ति के आदर्श निर्माण करने का आधार है

(vii) विवाह के उद्देश्य?

उत्तर- विवाह स्त्री- पुरुष को पारिवारिक जीवन में प्रवेश कराने की एक संस्था है |

विवाह के उद्देश्य

(1) कर्तव्यों का पालन |
(2) परिवार की स्थापना |
(3) यौन इच्छाओं की पूर्ति |
(4) धार्मिक एवं सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति |
(5) संस्कृति का हस्तांतरण |
(5) वैध संतानोत्पत्ति |

(viii) प्रबोधन किसे कहते हैं?

उत्तर- प्रबोधन 18वी  शताब्दी में यूरोप में चलने वाला एक बौद्धिक आन्दोलन था, जो मनुष्य की तार्किक शक्ति एवं नवाचार में विश्वास करता था| इसी आन्दोलन की वजह से यूरोप में फ्रांसीसी एवं औद्योगिक जैसी दो क्रांतियां हुयी| इन क्रांतियो के परिणामस्वरूप समाजशास्त्र विषय अस्त्तिव में आया|

(IX) समुदाय किसे कहते हैं?

उत्तर- समुदाय का तात्पर्य व्यक्तियों के ऐसे समूह से है ,जो किसी निश्चित भू-क्षेत्र में रहते हैं तथा सभी व्यक्ति
आर्थिक एवं राजनैतिक क्रियाओं में एक साथ भाग लेते हैं एवं एक स्वायत्त इकाई का निर्माण करते हैं, जैसे – गाँव, टोला आदि | किंग्सले डेविस (Kingsley Davis) के अनुसार “समुदाय वह सबसे छोटा क्षेत्रीय समूह जिसके अंतर्गत जीवन के सभी पहलू आ जाते हैं |”

 (X) धर्म?

उत्तर- सामान्य अर्थों में अति प्राकृतिक शक्ति में विश्वास ही धर्म है| जिसे व्यक्ति पूजा, आराधना एवं कर्मकाण्डों  माध्यम से समर्पित करता है| किंतु यह धर्म के अंग्रेजी शब्द रिलिजन की परिभाषा है| भारतीय शास्त्रों में धर्म का तात्पर्य कर्तव्यों का पालन करना है, क्योंकि व्यक्ति अपने कर्तव्यों से विमुख नहीं हो सकता, इसलिए भारतीय जीवन में धर्म दिन-प्रतिदिन के कर्तव्यों के पालन से है, जैसे पितृ धर्म है – परिवार का भरण-पोषण करना|

                                               खण्ड- ब

2. मानव समाज तथा पशु समाज में अंतर स्पष्ट करें?

उत्तर- मानव एवं पशु समाज में अंतर

मनुष्य के अतिरिक्त अन्य जीवों (पशु-पक्षियों) में भी समाज पाया जाता है ,लेकिन इनमें सामाजिक संबंध अल्प कालीन होते हैं | पशुओं में समाज तो पाया जाता है लेकिन संस्कृति नहीं पायी जाती है | किंग्सले डेविस (Kingsley Davis) ने अपनी पुस्तक ह्यूमन सोसाइटी (Human Society) में कहा है कि यदि कोई एक कारक मनुष्य के अनूठेपन की व्यवस्था कर सकता है, तो वह तत्त्व यह है कि केवल मनुष्य में ही संस्कृति पायी जाती है, पशुओं में नहीं |डेविस ने पशु समाज को बायो- सोशल सिस्टम (Bio -social system) एवं मनुष्य समाज को सोसियो- कल्चरल सिस्टम (Socio-cultural system) कहा है |  मानव एवं पशु समाज के अंतर को निम्न बिंदुओं में देखा जा सकता है |

(1) मानव समाज में संस्कृति पायी जाती है ,पशु समाज में नहीं |

(2) मानव समाज में मूल प्रवृत्ति (Instinct) सामान्यतः नहीं पायी जाती है, जबकि पशु समाज में क्रियाकलाप अधिकतर मूल प्रवृत्तियों पर ही आधारित होते हैं |

(3) मानव सीखने की अनंत क्षमता के साथ पैदा होता है, जबकि पशु में सीखने की क्षमता बहुत ही कम होती है |

(4) मानव बोलकर अपने भावों को भाषा द्वारा प्रकट कर सकता है ,जबकि पशु केवल विशेष प्रकार की आवाज ही निकाल सकते हैं |

(5) चूँकि मानव मस्तिष्क अधिक विकसित होता है | अत: उसमें तर्क-वितर्क करने की क्षमता होती है ,जबकि पशुओं के मस्तिष्क कम विकसित होने के कारण तर्क शक्ति का अभाव पाया जाता है |

3. समुदाय की परिभाषा दीजिए? समुदाय तथा समिति में अंतर स्पष्ट करें?

उत्तर- गिन्सबर्ग (Ginsberg) के अनुसार समुदाय एक निश्चित भू-भाग में रहने वाली वह समस्त जनसंख्या है , जो सामान्य नियमों की व्यवस्था द्वारा जीवन की अंतःक्रिया को प्रभावित कर साथ-साथ रहते हैं |

समुदाय के द्वारा व्यक्ति की सामान्य आवश्यकता की पूर्ति होती है | लेकिन विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति समुदाय द्वारा नहीं हो पाती है , इस पूर्ति के लिए जब व्यक्ति अपने जैसे हित वाले व्यक्तियों के साथ तालमेल करता है एवं परस्पर सहयोग कर संगठित रूप सेे हितों को पूरा करने के लिए समूह का निर्माण करता है तो इसे समिति कहते हैं , जैसे क्रिकेट खेलने में रूचि लेने वाले व्यक्ति क्लब बनाकर सदस्य बन जाते हैं |

(1) समुदाय एक बड़ा मानव समूह होता है जबकि समिति में अपेक्षाकृत कम सदस्य होते हैं |

(2) समुदाय का एक निश्चित भू-क्षेत्र होता है,जबकि समिति भू-क्षेत्र से बँधी नहीं होती है |

(3) समुदाय का विकास स्वतः होता है, जबकि समिति को विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कृत्रिम रुप से बनाया जाता है |

(4) समुदाय की सदस्यता अनिवार्य होती है जबकि समिति की सदस्यता ऐच्छिक होती है

(5) समुदाय, प्रथाओं एवं परंपराओं के माध्यम से कार्य करती है , जबकि समिति निर्मित नियम के माध्यम से कार्य करती है |

(6) समुदाय में हम कि भावना प्रमुख तत्व होता है,जबकि समिति में हम की भावना आवश्यक नहीं है |

(7) समुदाय में व्यक्ति के समग्र जीवन का एक बड़ा भाग शामिल होता है,जबकि समिति में समग्र जीवन का छोटा भाग शामिल होता है |

4. सन्दर्भ समूह को स्पष्ट करें?

उत्तर- संदर्भ समूह (Reference group)

संदर्भ समूह शब्द (Term) का प्रयोग सर्वप्रथम हरबर्ट हाइमन (Herbert Hyman) ने अपनी पुस्तक आर्चीव्स ऑफ साइकोलॉजी (Archives of Psychology) में किया | इस शब्द का प्रयोग उन्होंने उस समूह के लिए किया जिसके आधार पर व्यक्ति अपनी स्थिति का मूल्यांकन करता है | लेकिन संदर्भ समूह को सिद्धांत एवं समाजशास्त्रीय स्वरूप प्रदान करने का कार्य रॉबर्ट के. मर्टन (Robert K. Merton) ने अपनी पुस्तक सोशल थियरी एण्ड सोशल स्ट्रक्चर (Social Theory and Social Structure) में किया |

संदर्भ समूह वह समूह है जिसे मानक समझकर व्यक्ति स्वयं के व्यवहार का मूल्यांकन करता है एवं मानसिक रूप से उस समूह का सदस्य बनने की इच्छा होती है ,जैसे बेरोजगार व्यक्ति द्वारा रोजगार प्राप्त व्यक्ति के समूह को संदर्भ समूह के रूप में देखना |

मर्टन ने संदर्भ समूह के सिद्धांत को स्पष्ट करने के लिए दो अवधारणाओं (1) सापेक्षिक वंचना (Relative Deprivation) (2) पूर्वानुमानित समाजीकरण (Anticipatory Socialization) का प्रयोग किया |

सापेक्षिक वंचना का प्रयोग सर्वप्रथम सैमुएल स्टॉफर (Samuel Stouffer) ने अपनी पुस्तक दी अमेरिकन सोल्जर (The American Soldier) में किया ,जिसे उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सैनिकों मे व्याप्त असंतोष को स्पष्ट करने के लिए किया था, जबकि पूर्वानुमानित समाजीकरण की अवधारणा मर्टन की ही है|

सापेक्षिक वंचना की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति अपने समूह की तुलना अन्य समूह से करता है एवं अपने समूह को तुलनात्मक रुप से निम्न स्थिति में पाता है | यह स्थिति उसमें हीनता या हताशा उत्पन्न करता है | इसे सापेक्षिक वंचना कहते हैं | जब व्यक्ति इस हताशा या हीनता से मुक्त होना चाहता है एवं मुक्त होने के लिए अन्य समूह की शर्तों को पूरा करने का जो प्रयास करता है उसे अग्रिम समाजीकरण कहते हैं |

सापेक्षिक वंचना से व्यक्ति को मुक्ति तभी मिलती है जब वह गैर-सदस्यी संदर्भ समूह की सदस्यता प्राप्त करने में सफल हो जाता है |

संदर्भ समूह के माध्यम से व्यक्ति अपने कथनों को स्पष्ट करता है एवं क्रियाओं को आैचित्यता प्रदान करने का कार्य करता है | इस तरह संदर्भ समूह व्यक्ति का सदस्यता समूह तथा गैर-सदस्यता समूह दोनों में से कोई एक या दोनों हो सकता है | लेकिन मर्टन ने संदर्भ समूह सिद्धांत का विश्लेषण प्राथमिक रुप से गैर-सदस्य समूह के संदर्भ में ही किया क्योंकि इसके द्वारा सामाजिक संरचना में परिवर्तन होता है एवं सामाजिक गतिशीलता की संभावनाओं में वृद्धि होती है |

5. समूह किसे कहते हैं? सामाजिक समूह के विभिन्न चरणों की विवेचना कीजिए?

उत्तर समूह तथा सामाजिक समूह में अंतर है | समूह शब्द का प्रयोग हम व्यक्तियों के संग्रह के लिए करते हैं, लेकिन सामाजिक समूह में सामाजिक अंतःक्रिया (Social interaction) या सामाजिक संबंध (Social relationship) का होना आवश्यक है | सामाजिक समूह निर्माण के चरण को निम्नवत् देखा जा सकता है –

(1) एकत्रीकरण (Aggregate)

(2) सामाजिक श्रेणी (Social category) या सांख्यिकीय समूह (Statistical group)

(3) समाजमूलक समूह (Societal group) या समूहता (Collectivity)

(4) सामाजिक समूह (Social group)

(5) समितीय समूह (Associational group)

रॉबर्ट बीरस्टीड (Robert Bierstedt) ने अपनी पुस्तक सोशल आर्डर ( Social Order) में स्वजातीय चेतना (Consciousness of kind) , सामाजिक अंतःक्रिया (Social interaction) एवं सामाजिक संगठन (Social organization) के आधार पर समूह को निम्न चार भागों में वर्गीकृत किया –

(1) सामाजिक श्रेणी (Social category) – सामाजिक श्रेणी व्यक्तियों का संग्रह है, जिनमें कुछ साझी विशेषताएं पायी जाती हैं | इनमें स्वजातीय चेतना , सामाजिक अंत:क्रिया एवं सामाजिक संगठन नहीं पाया जाता है , जैसे – उम्र एवं लिंग (Age and Sex) या समान व्यवसाय के आधार पर समूह |

(2) समतामूलक समूह या समूहता (Societal group or Collectivity) – इस समूह का निर्माण समान लक्षणों के आधार पर ही नहीं बल्कि स्वजातीय चेतना के समावेश होने पर होता है , लेकिन सामाजिक अंतःक्रिया एवं सामाजिक संगठन की अनुपस्थिति रहती है | लेकिन इसमें अंतःक्रिया को जन्म देने की पूर्ण क्षमता पायी जाती है , इसलिए इसे सामाजिक समूह की पूर्ववर्ती अवस्था कहा जाता है , जैसे – जाति |

(3) सामाजिक समूह (Social group) – सामाजिक समूह में स्वजातीय चेतना के साथ सामाजिक अंतःक्रिया भी पायी जाती है | सामाजिक समूह का निर्माण कुछ मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए होता है, इसलिए परिवार को समाजिक समूह का आदर्श उदाहरण माना जाता है |

आगबर्न एवं निमकॉफ के अनुसार - जब कभी दो या दो से अधिक व्यक्ति एकत्रित होते हैं एवं एक दूसरे पर प्रभाव डालते हैं तो समाजिक समूह का निर्माण करते हैं |

(4) समितीय समूह (Associational group) – जब स्वजातीय चेतना के साथ अंतःक्रिया एवं अंतःक्रियाओं का संगठित रूप सामने आने लगता है तब उसे समितीय समूह कहते हैं | सामाजिक समूह में व्यक्ति की सामान्य आवश्यकता की पूर्ति होती है जबकि समितीय समूह द्वारा व्यक्ति अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति करता है |

6. एक विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र की प्रकृति की विवेचना कीजिए?

समाजशास्त्र को विज्ञान मानने के आधार निम्नलिखित है –

(1) समाजशास्त्रीय ज्ञान का आधार वैज्ञानिक पद्धति– समाजशास्त्र में तथ्यों के संकलन के लिए विभिन्न वैज्ञानिक पद्धतियों काप्रयोग किया जाता है ,जैसे – अवलोकन पद्धति ,अनुसूची ,साक्षात्कार ,सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति आदि |

(2) समाजशास्त्र में क्या है का वर्णन—  समाजशास्त्र इस बात पर विचार नहीं करता कि क्या अच्छा है ,क्या बुरा है या क्या होना चाहिए ,बल्कि घटना जिस रूप में है ,उसी रूप में उसका चित्रण करता है |

(3) समाजशास्त्र में कार्य-कारण संबंधों की विवेचना— प्रत्येक सामाजिक घटना का कोई न कोई कारण अवश्य होता है ,जिसका पता लगाना समाजशास्त्री का दायित्व है|

(4) समाजशास्त्र में तथ्यों का वर्गीकरण एवं विश्लेषण—  असंबद्ध आँकड़ों या तथ्यों के आधार पर कोई वैज्ञानिक निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता | समाजशास्त्र में  प्राप्त तथ्यों को समानता के आधार पर विभिन्न वर्गों में बाँटा जाता है जिसे वर्गीकरण कहते हैं | वैज्ञानिक निष्कर्ष तक पहुँचने के लिए इन तथ्यों का विश्लेषण किया जाता है |

(5) समाजशास्त्र में पूर्वानुमान की  क्षमता —  विज्ञान की एक कसौटी पूर्वानुमान करने की क्षमता का होना है ,इसका तात्पर्य वैज्ञानिक पद्धति के माध्यम से सामान्यीकरण इतना निश्चित रुप से हो जाए कि वर्तमान में प्राप्त निष्कर्ष के आधार पर भविष्य की घटनाओं के बारे में अनुमान लगाया जा सके | ऐसा होने पर उस पर नियंत्रण की संभावना बढ़ जाती है |

 रॉबर्ट बीरस्टीड (Robert Bierstedt) ने अपनी पुस्तक द सोशल ऑडर (The Social Order) में समाजशास्त्र के विज्ञान होने के समर्थन में निम्नलिखित विशेषताओं का  वर्णन किया है-

(1) समाजशास्त्र वास्तविक विज्ञान (Positive Science) है न कि आदर्शात्मक (Normative) |

(2) समाजशास्त्र एक विशुद्ध (Pure) विज्ञान है न कि व्यावहारिक विज्ञान (Applied Science) |

(3) समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान (Social Science) है न कि प्राकृतिक विज्ञान (Natural Science) |

(4) समाजशास्त्र एक अमूर्त (Abstract) विज्ञान है न कि मूर्त (Concrete) |

(5) समाजशास्त्र एक सामान्य  (General) विज्ञान है न कि विशेष (Special) विज्ञान  |

(6) समाजशास्त्र तार्किक (Rational) एवं अनुभवसिद्ध (Empirical) विज्ञान है |

7. अन्तः विवाह एवं बहिर्विवाह को स्पष्ट करें?

उत्तर- किसी भी समाज या संस्कृति में विवाह को पूर्णतः स्वेच्छा पर नहीं छोड़ा जाता है ,इसके कुछ नियम प्रत्येक समाज में पाये जाते हैं | यह मुख्यतः दो प्रकार का होता है –

(1) बहिर्विवाह (Exogamy)
(2) अंतः विवाह (Endogamy)

(1) बहिर्विवाह (Exogamy)

बहिर्विवाह का नियम यह निश्चित करता है कि कुछ नजदीकी संबंधियों या नातेदारों के बीच यौन संबंध नहीं होने चाहिए | अतः यह नियम उस भीतरी सीमा का निर्धारण करता है जिसके बाहर ही किसी को विवाह की अनुमति होती है , जैसे परंपरागत रूप से हिंदुओं में सपिण्ड एवं गोत्र से बाहर विवाह की मान्यता है अपने सपिण्ड एवं गोत्र में विवाह का निषेध किया गया है |

(2) अंतःविवाह (Endogamy)

यह नियम विवाह के बाहरी सीमा का निर्धारण करता है | इस सीमा के भीतर ही विवाह की अनुमति होती है| इसके बाहर विवाह नहीं किया जाता , जैसे – परंपरागत रूप से हिंदुओं में जाति के भीतर विवाह की इजाजत है ,जाति के बाहर अर्थात् दूसरी जाति में विवाह की अनुमति नहीं है |

8. समाज के प्रकार?

उत्तर- समाज के प्रकार (Types of Society)

(1) जनजातीय समाज (Tribal Society) -यह प्रारंभिक समाज है |समाज का विस्तार नातेदारी तक सीमित होता है | श्रम विभाजन नहीं पाया जाता है | केवल मानवीय ऊर्जा का प्रयोग करते हैं ,पशु एवं प्रौद्योगिकी का उपयोग नहीं कर पाते हैं | जीविकोपार्जन के लिए शिकार एवं खाद्य- संग्रह पर निर्भर रहते हैं |जादू एवं तंत्र-मंत्र का प्रभाव रहता है | अतिरिक्त उत्पादन समूह के भीतर या समूहों के बीच वस्तु-विनिमय के लिए होता है |

(2) कृषक समाज (Agrarian Society) – इस समाज का स्थायी निवास होता है एवं मुख्यत: कृषि कार्य से जुड़े रहते हैं | कृषि उत्पादन के लिए मानवीय उर्जा के साथ पशु उर्जा का प्रयोग करते हैं | अतिरिक्त उत्पादन के लिए आंशिक बाजार पाया जाता है |

(3)  औद्योगिक समाज (Industrial Society) – इस समाज में उन्नत प्रौद्योगिकी पायी जाती है | इस समाज में निजी संपत्ति का अविर्भाव हुआ | शिक्षा का प्रसार अधिक होता है | मानवीय ऊर्जा के साथ निर्जीव ऊर्जा (मशीनों का संचालन तेल या बिजली द्वारा ) का प्रयोग करते हैं |पूँजीपति उत्पादन मुनाफा के लिए करते हैं| अधिकतर सामाजिक संबंध भावनात्मक न होकर आवश्यकताजनित होते हैं |श्रम विभाजन स्पष्ट होता है |

(4) उत्तर औद्योगिक समाज (Post Industrial Society) – उत्तर-औद्योगिक समाज शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम डेनियल बेल(Daniel Bell) ने किया था | इस समाज में सेवा क्षेत्र अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है | उत्पादन की जगह उपभोग तथा अवकाश का क्षेत्र बढ़ता जाता है | इस समाज में संपत्ति अर्जन का आधार ज्ञान या प्रौद्योगिकी होता है| मशीनीकरण की जगह स्वचालिनीकरण (Automation) की महत्ता बढ़ जाती है | श्रम विभाजन के स्थान पर विशेषीकरण (Specialization) का महत्त्व अधिक होता  है |

9. प्रस्थिति को परिभाषित करें? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें?

उत्तर- प्रस्थिति एवं भूमिका का विवेचन सर्वप्रथम रॉल्फ लिण्टन (Ralph Linton) ने अपनी पुस्तक दी स्टडी ऑफ मैन (1936) (The Study of Man) में किया| उनके अनुसार समाज का कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसे कोई प्रस्थिति न प्राप्त हो|

रॉल्फ लिण्टन के अनुसार सामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत किसी व्यक्ति को एक समय विशेष में जो स्थान प्राप्त होता है, उसी को उस व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति कहते हैं|

प्रस्थिति की विशेषताएँ

(1) प्रस्थिति के उद्भव का मुख्य स्रोत भूमिका होती है|

(2) प्रस्थिति से अधिकार एवं कर्तव्य का बोध होता है, जैसे – पिता या पुत्र की प्रस्थिति|

(3) प्रत्येक व्यक्ति समाज में कोई न कोई प्रस्थिति अवश्य धारण करता है|

(4) प्रस्थिति के अनुरूप व्यक्ति को भूमिका का निर्वहन करना पड़ता है|

(5) प्रस्थिति प्रदत्त या अर्जित दोनों में से कोई एक या दोनों हो सकती है|

(6) प्रस्थिति के आधार पर समाज कई समूहों में बँटा होता है|

(7) एक व्यक्ति की एक समय में एक से अधिक प्रस्थितियाँ हो सकती हैं|

(8) प्रस्थितियाँ समाज की आवश्यकता का परिणाम होती हैं|

(9) प्रस्थिति के साथ प्रतिष्ठा जुड़ी होती है|

                                      खण्ड

10. स्वरूपात्मक सम्प्रदाय एवं समन्वयात्मक सम्प्रदाय के सन्दर्भ में समाजशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र को रेखांकित करें?

उत्तर- समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र या अध्ययन क्षेत्र

समाजशास्त्र के विषय क्षेत्र को लेकर विद्वानों में मतभेद है | अनेक समाजशास्त्रियों द्वारा भिन्न-भिन्न मत व्यक्त किए गए हैं , जिसे प्रमुख रुप से दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है –

(1) स्वरुपात्मक संप्रदाय
(2) समन्वयात्मक संप्रदाय

स्वरुपात्मक संप्रदाय के अनुसार समाजशास्त्र एक विशेष विज्ञान है एवं इसमें कुछ विशेष प्रकार के सामाजिक संबंधों का ही अध्ययन होना चाहिए | 
समन्वयात्मक संप्रदाय के अनुसार समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है एवं सामाजिक संबंधों या समाज का समग्रता में अध्ययन होना चाहिए |

स्वरुपात्मक संप्रदाय (Formalistic School)

यह संप्रदाय समाजशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र को अत्यंत सीमित एवं विशिष्ट मानता है | यह केवल उन्हीं  समस्याओं या सामाजिक पक्षों तक समाजशास्त्र के अध्ययन को सीमित करना चाहता है ,जिसका अध्ययन अन्य सामाजिक विज्ञानो द्वारा नहीं किया जाता है | इस संप्रदाय में मुख्य रुप से जॉर्ज सिमेल, टॉनीज , वॉन विज, वीरकान्त, मैक्स वेबर शामिल है |

सिमेल के विचार (Views of Simmel) –

सिमेल के अनुसार सभी प्राकृतिक एवं सामाजिक घटनाओं के दो पक्ष होते हैं –

(1) स्वरूप (Form) (2) अंतर्वस्तु (Content)

स्वरूप का अध्ययन अंतर्वस्तु से पृथक कर स्वतंत्र रुप से किया जा सकता है | क्योंकि सभी सामाजिक विज्ञान में अंतर्वस्तु पक्ष का अध्ययन होता है ,लेकिन किसी भी विज्ञान द्वारा स्वरुप का अध्ययन नहीं होता है | यदि समाजशास्त्र स्वरुप का अध्ययन करें तो यह अन्य सामाजिक विज्ञानो से भिन्न एवं विशिष्ट हो सकता है | सिमेल ने संघर्ष ,सहयोग ,प्रतिस्पर्धा, एकीकरण आदि को सामाजिक संबंधों के स्वरुप से संबोधित किया एवं इन पक्षों से जुड़े राजनीतिक, आर्थिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक इत्यादि को अंतर्वस्तु से संबोधित किया | सिमेल के अनुसार समाजशास्त्र को स्वरुप का ही अध्ययन करना चाहिए |

मैक्स वेबर के विचार (Views of Max Weber) –

वेबर के अनुसार समाजशास्त्र सामाजिक क्रियाओं का अध्ययन है | सामाजिक क्रिया से वेबर का तात्पर्य –

(1) वह क्रिया जो दूसरे लोगों के व्यवहारों से प्रभावित होती है |

(2) वह क्रिया जो अर्थ पूर्ण हो |

वेबर ने एक तरफ से की गई क्रिया को सामाजिक क्रिया नहीं माना , जैसे – जादूगर द्वारा जादू का खेल दिखाना या पूजा करना | तात्पर्य है कि सामाजिक क्रिया वही है जिसका संदर्भ व्यक्ति हो तथा करने वाला समाज से प्रभावित हो तथा समाज को प्रभावित करे | वेबर के अनुसार सामाजिक क्रिया समस्त सामाजिक संबंधों का एक विशेष भाग है | अतः सामाजिक क्रिया के अध्ययन द्वारा समाजशास्त्र को एक विशेष विज्ञान बनाया जा सकता है |

वीरकांत के विचार (Views of Vierkant)

इनके अनुसार समाजशास्त्र मानसिक संबंधों का अध्ययन है जो एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से अथवा समूह में बाँधता है | इस तरह व्यक्तियों के बीच के संबंध जैसे – प्रेम ,घृणा, असंतोष आदि संबंधों के द्वारा होता है जिसके द्वारा सहयोगी एवं विरोधी संबंध बनते हैं | वीरकांत के अनुसार समाजशास्त्र के द्वारा सिर्फ इसी तरह के संबंधों का अध्ययन होना चाहिए |

वॉन विज के विचार (Views of Von Wiese)

वॉन विज के अनुसार समाजशास्त्र एक विशिष्ट सामाजिक विज्ञान है जो कि मानवीय संबंधों के स्वरुपों का अध्ययन है और यही उसका विशिष्ट क्षेत्र है | वान विज ने सामाजिक संबंधों के 650 स्वरूपों की चर्चा की है | उनके अनुसार समाजशास्त्र को इन्ही स्वरूपों का अध्ययन करना चाहिए |

टॉनीज के विचार (Views of Tonnies)

उनके अनुसार समाजशास्त्र शुद्ध एवं स्वतंत्र विज्ञान है | सामाजिक संबंधों के स्वरुपों के आधार पर टॉनीज ने समाज को दो भागों में विभाजित किया –

(1) जीमेनशैफ्ट (समुदाय)

(2) जेसेलशैफ्ट (समिति)

टॉनीज के अनुसार समाजशास्त्र का उद्देश्य इन्हीं दो तरह की श्रेणियों के अंतर्गत सामाजिक संबंधों के स्वरुपों का अध्ययन करना है |

इसकी आलोचना में सोरोकिन कहते हैं कि भौतिक वस्तुओं के अंतरवस्तु बदलने पर स्वरुप में कोई परिवर्तन नहीं आता | लेकिन समाज में ऐसा नहीं होता | हम किसी सामाजिक संरचना को नहीं जानते जिसके सदस्यों में परिवर्तन हो लेकिन उसके स्वरुप में कोई परिवर्तन न हो | उदाहरण के लिए यदि अमेरिकी समाज में अमेरिकी लोगों के बजाय चीनी समुदाय या अफ्रीका के बुशमैन के लोग आ जाएं तो क्या अमेरिकी समाज के स्वरुप में कोई बदलाव नहीं होगा ?

समन्वयात्मक संप्रदाय (Synthetic School)

इस संप्रदाय के प्रमुख विचारक दुर्खीम, सोरोकिन, हॉबहाउस, गिन्सबर्ग आदि हैं | इन विद्वानों का मत है कि
समाज के विभिन्न भाग एक दूसरे से संबंधित एव अन्तर्निर्भर है | अतःसमाजशास्त्र में संपूर्ण समाज का सामान्य अध्ययन आवश्यक हो जाता है |

दुर्खीम के विचार (Views of Durkheim) –

दुर्खीम के अनुसार सामाजिक तथ्य जैसे – परम्परा ,लोकाचार , प्रथा आदि के आधार पर समाज में कुछ सामूहिक विचारधाराएं बन जाती हैं , जिसे वे सामूहिक प्रतिनिधित्व या प्रतिनिधान (Collective Representation) कहते हैं | दुर्खीम के अनुसार समाजशास्त्र सामूहिक प्रतिनिधान का विज्ञान है ,और इसके द्वारा समाज का सामान्य अध्ययन किया जाता है |

सोरोकिन के विचार (Views of Sorokin) –

सोरोकिन के अनुसार प्रत्येक सामाजिक विज्ञान एक दूसरे पर किसी न किसी रुप से निर्भर हैं | समाजशास्त्र इन्हीं पारस्परिक संबंधों या उनके सामान्य पक्षों का अध्ययन करता है | सोरोकिन इसे एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करते हैं –

आर्थिक संबंध —- a, b, c, d, e, f
राजनीतिक संबंध —- a, b, c, g, h, i
धार्मिक संबंध —- a, b, c, j, k, l
वैज्ञानिक संबंध —- a, b, c, m,n,o
मनोरंजनात्मक संबंध —- a, b, c, p, q, r

उपर्युक्त में a, b, c ऐसे तत्व है जो सभी विषयों में विद्यमान है | सोरोकिन के अनुसार समाजशास्त्र इन्हीं सामान्य तत्वों का अध्ययन करता है | निष्कर्ष अतः कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र के विषय क्षेञ से संबंधित दोनों ही दृष्टिकोण (स्वरुपात्मक एवं समन्वयात्मक ) एकाकी हैं | समाजशास्त्र न तो केवल विशिष्ट सामाजिक संबंधों का अध्ययन करता है और न ही सामान्य सामाजिक प्रघटनाओं का | दोनों प्रकार का अध्ययन परिस्थितिजन्य होता है | अतः समाजशास्त्र के विषय क्षेत्र के अंतर्गत सामान्यता एवं विशिष्टतादोनों का अध्ययन किया जाता है |

11. परिवार को परिभाषित करें? परिवार के प्रकारों का विस्तृत वर्णन करें?

उत्तर- परिवार की परिभाषा

परिवार एक छोटा सामाजिक समूह है, जिसके अंतर्गत पति-पत्नी एवं उनके बच्चे शामिल होते हैं | प्रत्येक मानव समाज में नवजात शिशु के लालन-पालन की आवश्यकता होती है यह लालन पालन माता-पिता द्वारा हो या अन्य द्वारा , इससे जुड़े कुछ नियम पाए जाते हैं जो परिवार को एक संस्था का स्वरूप प्रदान करते हैं | संस्था के रूप में परिवार सार्वभौमिक (सभी समाज में पाया जाता है) है |

मैकाइवर एवं पेज के अनुसार परिवार यौन संबंधों पर आधारित एक छोटा समूह है, जो बच्चों के जन्म एवं लालन-पालन की व्यवस्था करता है|

परिवार के प्रकार (Types of family) –

संख्या के आधार पर – (1) संयुक्त परिवार (2) नाभिकीय परिवार

निवास के आधार पर – (1) पितृ स्थानीय (2) मातृ-स्थानीय (3) नव- स्थानीय

अधिकार के आधार पर – (1) पितृ सतात्मक (2) मातृ-सतात्मक

वंशनाम के आधार पर – (1) पितृ-वंशीय (2) मातृ-वंशीय

विवाह के आधार पर – (1) एक विवाही (2) बहु-विवाही

संयुक्त परिवार (Joint Family) – इस परिवार में अनेक पीढ़ियों के रक्त संबंधी एक साथ रहते हैं एवं एक ही रसोईयाँ होता है | पितृ पूजा एवं संयुक्त संपत्ति इसकी विशेषता है | परिवार का एक मुखिया होता है जिसके द्वारा सदस्यों में सामंजस्य बना रहता है| भारत में मुख्य रुप से यही परिवार पाया जाता है|

डंकन मिचेल के अनुसार – संयुक्त संपत्ति के साथ जब कर्ता की उपस्थिति तथा पितृ पूजा की विशेषता जुड़ जाती है तो वह परिवार संयुक्त परिवार में बदल जाता है |

नाभिकीय परिवार (Nuclear Family) – यह परिवार पति-पत्नी एवं अविवाहित बच्चों से मिलकर बना होता है | जैसे ही बच्चों की शादी हो जाती है यह संयुक्त परिवार में बदल जाता है | पश्चिम के देशों – जैसे यूरोप के सभी देश , अमेरिका आदि में मुख्य रूप से यही परिवार पाया जाता है | भारत में भी जीविकोपार्जन के लिए शहरों में बसे लोगों में यही परिवार पाया जाता है |

पितृ-स्थानीय परिवार (Patri-local Family) – ऐसा परिवार जो विवाह के उपरांत पति के परिवार के साथ रहता है तो उसे पितृ स्थानीय परिवार कहते हैं | भारत में मुख्य रूप से यही परिवार पाया जाता है |

मातृ-स्थानीय (Matri-local) – विवाह के उपरांत जब वैवाहिक जोड़ा पत्नी के परिवार के साथ रहता है तो उसे मातृ-स्थानीय परिवार कहते हैं | जैसे – केरल के नायर में |

नव स्थानीय (Neo-local) – विवाह के उपरांत जब वैवाहिक जोड़ा पति या पत्नी में से किसी के परिवार को न चुनकर एक नए स्थान पर रहता है, तब इसे नव स्थानीय परिवार कहते हैं |

पितृ-सतात्मक परिवार (Patriarchal Family) – ऐसा परिवार जिसमें पुरुष या पति का आधिपत्य रहता है पारिवारिक निर्णय में पुरुष की ही मुख्य भूमिका रहती है | भारत में मुख्य रूप से यही परिवार पाया जाता है|

मातृ- सतात्मक परिवार (Matriarchal Family) – ऐसे परिवार में स्त्रियों का पुरुषों पर आधिपत्य रहता है | परिवार की समस्त बागडोर स्त्री के हाथ में होती है | उत्तर प्रदेश एवं बिहार के तराई क्षेत्रों में रहने वाली थारु जनजाति इसका उदाहरण है |

पितृ-वंशीय परिवार (Patri-lineal Family) – वह परिवार जिसमें बच्चों का वंशनाम एवं संपत्ति पिता के वंश से प्राप्त होता है तो ऐसे परिवार को पितृ-वंशीय परिवार कहते हैं | भारत में मुख्य रुप से यही परिवार पाया जाता है |

मातृ-वंशीय परिवार (Matri-lineal Family) – जब बच्चों के वंश का नाम माता के वंश के आधार पर होता है तब ऐसे परिवार को मातृ-वंशीय परिवार कहते हैं | केरल के नायरों में यही परिवार पाया जाता है |

एक-विवाही परिवार (Monogamous Family) – एक समय में पुरुष के एक पत्नी एवं स्त्री के एक ही पति हो, तब ऐसे परिवार को एक विवाही परिवार कहा जाता है | भारत में मुख्य रूप से यही परिवार पाया जाता है |

बहु-विवाही परिवार (Polygamous Family) – कोई स्त्री या पुरुष जब एक से अधिक जीवन साथी के द्वारा परिवार का निर्माण करता है | तब उसे बहु विवाही परिवार कहते हैं, जैसे – टोडा, खस, कोटा आदि जनजातियों में|

रचना के आधार पर लॉएड वार्नर (Lloyd Warner) ने परिवार को दो भागों में विभाजित किया –

(1) जन्म का परिवार (Family of orientation)

(2) जनन का परिवार (Family of procreation)

एण्डरसन ने वार्नर की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि व्यक्ति जिस परिवार में जन्म लेता है वह उसका जन्म का परिवार होता है तथा विवाह एवं संतानोत्पत्ति के द्वारा जिस परिवार का निर्माण करता है वह उसका जनन का परिवार होता है | इसके अतिरिक्त वर्तमान समय में दो और प्रकार के परिवार के रूप दिखाई देते हैं –

विस्तारित परिवार (Extended Family) – यह कई नाभिकीय परिवारों का समूह होता है | इसमें निवास स्थान तो एक ही रहता है लेकिन भोजन के लिए रसोईयाँ अलग-अलग होता है, जैसे – संयुक्त परिवार से हाल ही में अलग हुए कई परिवारों का समूह|

गृहस्थ समूह (Household) – यह एक से अधिक व्यक्तियों का समूह है, जो एक ही निवास स्थान में रहते हैं आपस में रक्त या विवाह संबंधी होते हैं| यद्यपि एक या एक से अधिक ऐसे व्यक्ति होते हैं जो उनके नातेदार नहीं होते हैं, जैसे किसी परिवार में दूर का कोई रिश्तेदार या कोई नौकर स्थाई रुप से रहता हो|

12. सामाजिक स्तरीकरण को परिभाषित करें? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख सिद्धांतो की व्याख्या करें?

उत्तर- सामाजिक स्तरीकरण व्यक्तियों का समूहों के आधार पर उच्चता एवं निम्नता के स्तर पर विभाजन है | सामाजिक स्तरीकरण में हम मुख्यतः असमानता (Inequality) का अध्ययन करते हैं | असमानता (भिन्नता) प्राकृतिक या जैविकीय (जैसे – जन्म से ही बच्चे में मानसिक विकार) भी हो सकती है सामाजिक भी | सामाजिक असमानता अगर व्यक्तिगत स्तर पर है तो इसे विभेदीकरण कहेंगे, सामूहिक स्तर पर भी है परंतु अस्पष्ट एवं अस्थिर है तब भी विभेदीकरण होगा | किन्तु यही सामूहिक असमानता जब स्पष्ट एवं स्थिर हो जाती है तब सामाजिक स्तरीकरण हो जाता है , जैसे – भारत में जाति एवं पश्चिमी समाजों में वर्ग|

रूसो (Rousseau) ने सर्वप्रथम सामाजिक एवं प्राकृतिक असमानताओं में अंतर करने का प्रयास किया | उनके अनुसार जैविकीय या प्राकृतिक असमानताएं प्रकृति द्वारा निर्धारित होती हैं, जैसे – उम्र, स्वास्थ्य, शारीरिक बल, गुण आदि | जबकि सामाजिक असमानता सचेष्ट या असचेष्ट प्रयास से समाज द्वारा निर्मित होती है |

वहीं सोरोकिन (Sorokin) के अनुसार अस्तरीकृत समाज, जिसके सदस्यों में वास्तविक समानता हो, एक मिथक है, जो मानवीय जीवन में कभी साकार नहीं हुआ है 

दो व्यक्तियों के बीच सामाजिक स्तरीकरण नहीं पाया जा सकता | दो समूहों के बीच हो सकता है | अतः सामाजिक स्तरीकरण के लिए कम से कम चार व्यक्तियों का होना अनिवार्य है|

यदि किसी समूह का सदस्य बनना सभी के लिए खुला (अर्जित गुणों पर आधारित) न होकर बंद (प्रदत्त गुणों पर आधारित) हो तो ऐसे स्तरीकरण को बंद स्तरीकरण कहेंगे | इसके अंतर्गत दास, जागीर एवं जाति व्यवस्था शामिल है |जबकि वर्ग खुले स्तरीकरण का उदाहरण है|

स्तरीकरण के सिद्धांत (Theories of Stratification)

मार्क्स के सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धांत

मार्क्स स्तरीकरण का संघर्षवादी सिद्धांत प्रस्तुत करते हैं| उन्होंने आर्थिक (संपत्ति या धन) स्थिति को स्तरीकरण का मुख्य आधार माना है | स्वामित्व के कारण ही मानव इतिहास में हमेशा दो वर्ग उपस्थित रहा है – पहला शोषक (Haves) एवं दूसरा शोषित (Have nots).

मार्क्स के अनुसार स्तरीकरण का निर्माण समाज के उत्पादन प्रणाली (Mode of Production) पर निर्भर करता है जिस समाज में उत्पादन प्रणाली जैसी होगी वैसा ही स्तरीकरण उस समाज में पाया जाएगा|

सोरोकिन (Sorokin) ने तीन आधार पर स्तरीकरण को दर्शाया है –

(1) आर्थिक (Economic) (2) राजनीतिक (Political) (3) व्यावसायिक (Occupational)

रॉल्फ डाहरेनडार्फ (Ralph Dahrendorf) ने अपनी पुस्तक क्लास एण्ड क्लास कनफ्लिक्ट इन इंडस्ट्रियल सोसाइटी (Class and class conflict in industrial society) में लिखते हैं कि स्तरीकरण का मुख्य आधार उत्पादन के साधनो पर नियंत्रण के होने या नहीं होने से है | इन्होंने स्वामित्व एवं नियंत्रण में विभेद किया है | वर्ग संघर्ष पूंजीपति एवं सर्वहारा के बीच न होकर सर्वहारा एवं सर्वहारा के बीच नियंत्रण के मुद्दे पर होगा |

मैक्स वेबर ने अपनी पुस्तक एकॉनमी एण्ड सोसाइटी (Economy and Society) में लिखते हैं कि जिस प्रक्रिया के द्वारा समाज में समूह निर्माण होता है उसी के द्वारा स्तरीकरण भी निर्मित होता है | वेबर ने समाज में समूह निर्माण के तीन आधार बताए हैं –

(1) वर्ग (Class) (2) प्रस्थिति (Status) (3) दल (Party)

वेबर के प्रस्थिति का तात्पर्य प्रस्थिति समूह से हैं, जैसे – जाति|

आंद्रे बेते ने अपनी पुस्तक कास्ट, क्लास एण्ड पावर (Caste, Class and Power) में वेबर द्वारा प्रदत्त दृष्टिकोण के आधार पर स्तरीकरण की चर्चा करते हैं | उन्होंने तमिलनाडु के श्रीपुरम गाँव का अध्ययन किया एवं स्तरीकरण के तीन आधार बताएं –

(1) जाति (Caste) (2) वर्ग (Class)(3) शक्ति (Power)

किंग्सले डेविस एवं विलबर्ट मूर (Kingsley Davis and Wilbert Moore) ने अपनी पुस्तक सम सिपल्स ऑफ स्ट्रेटीफिकेशन (Some principles of stratification) में प्रकार्यवादी दृष्टिकोण के आधार पर स्तरीकरण की चर्चा की | उनके अनुसार स्तरीकरण सभी मानवीय समाजों में पाया जाता है (Stratification exists in every known human society)| डेविस एवं मूर के अनुसार प्रत्येक समाज के बने रहने के लिए कुछ अनिवार्य आवश्यकताएँ होती हैं, इसमें कुछ कठिन एवं चुनौतीपूर्ण कार्य होते हैं | इसके लिए कुछ प्रतिभावान व्यक्ति को आकर्षित करने के लिए विशेष प्रतिफल प्रदान किया जाता है, जिससे समाज का अनुरक्षण होता रहे | विशेष प्रतिफल से कुछ लोगों की वर्गीय स्थिति उच्च हो जाती है | इस तरह वे उच्चता एवं निम्नता में बँट जाते हैं | अतः सामाजिक स्तरीकरण द्वारा एकीकरण बनाए रखने का कार्य किया जाता है |डेविस और मूर के अनुसार स्तरीकरण सार्वभौमिक ही नहीं अनिवार्य है |

पारसन्स (Parsons) ने मूल्य सहमति (Value Consensus) को स्तरीकरण का आधार माना है| उन्होंने कार्यवादियों के इस बात को स्वीकार किया कि समाज के महत्वपूर्ण पदों पर विशेष व्यक्तियों को रखा जाता है| इन पदों को प्राप्त करने के लिए कुछ मूल्य होते हैं,जिस पर संपूर्ण समाज की सहमति होती है| जो इन मूल्यों के आधार पर कार्य करता है उसकी समाज में प्रस्थिति उच्च एवं उसे विशेष प्रतिफल मिलता है, एवं जो इससे अलग कार्य करता है उसे प्रतिफल नहीं मिल पाता| इस तरह मूल्य सहमति के आधार पर समाज में स्तरीकरण पाया जाता है|

13. विवाह किसे कहते हैं? विवाह के उद्देश्य बताइए? विवाह के प्रकारों की व्याख्या करें?

उत्तर- विवाह एक सार्वभौमिक एवं अनिवार्य संस्था है , जो प्रत्येक समाज में विभिन्न संस्कारों एवं कर्मकाण्डों द्वारा संपन्न किया जाता है | यह स्त्री एवं पुरुष को यौन संबंध स्थापित करने एवं बच्चों को जन्म की सामाजिक वैधता प्रदान करता है | विवाह पुरुष एवं स्त्री की प्रस्थिति (Status) को परिवर्तित कर उन्हें क्रमशः पति एवं पत्नी की प्रस्थिति प्रदान करता है | प्रस्थिति प्राप्त हो जाने से उससे जुड़ी कुछ कर्तव्य एवं भूमिकाएं भी निभानी पड़ती है | इसीलिए किंग्सले डेविस तथा बर्जेस एवं लॉक ने विवाह को भूमिकाओं की व्यवस्था (System of roles) कहा है |

अमेरिकी मानवशास्त्री जी.पी. मर्डाक (G. P. Murdock) ने 250 समाजों का अध्ययन कर विवाह के निम्न उद्देश्य बताए हैं –

(1) यौन संतुष्टि (Sexual satisfaction)
(2) आर्थिक सहयोग (Economic cooperation)
(3) समाजीकरण (Socialization)
(4) बच्चों का लालन-पालन (Upgradation of children)

विवाह के प्रकार

एक विवाह (Monogamy)

जब एक पुरुष या एक स्त्री वैवाहिक संबंध एक दूसरे तक सीमित रखता है तो उसे एक विवाह कहते हैं | तात्पर्य है कि एक स्त्री या पुरुष केवल एक बार विवाह करें तथा अपने जीवन साथी के रहते हुए दूसरा विवाह न करें, तब ऐसे विवाह को एक विवाह कहते हैं |

बहु-विवाह (Polygamy)

एक पुरुष के एक से अधिक पत्नियां या एक स्त्री के एक से अधिक पति हो ,तब ऐसे विवाह को

बहु-पति विवाह (Polyandry)

जब एक स्त्री एक समय में एक से अधिक पुरुषों से विवाह करती है तो इसे बहु-पति विवाह कहते हैं, उदाहरण के लिए नीलगिरी की पहाड़ियों में रहने वाली टोडा एवं कोटा जनजाति , उत्तराखंड की खस जनजाति में यह विवाह पाया जाता है | यह दो प्रकार का होता है – भातृक बहु-पति विवाह एवं गैर-भातृक बहु-पति विवाह |

भातृक बहु-पति विवाह (Fraternal Polyandry)

जब एक स्त्री एक से अधिक पुरुषों से विवाह करती है , एवं सभी पुरुष आपस में भाई हों , तब इसे भातृक बहु-पति विवाह कहते हैं, जैसे टोडा एवं खस जनजाति में |

अभातृक बहु-पति विवाह (Non-fraternal Polyandry)

जब एक स्त्री एक समय में एक से अधिक पुरुषों से विवाह करती है एवं सभी पुरुष आपस में भाई न हों तब इसे अभातृक बहु-पति विवाह कहते हैं

बहु-पत्नी विवाह (Polygyny)

जब एक पुरुष एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करता है, तब ऐसे विवाह को बहु-पत्नी विवाह कहते हैं |

अफ्रीका की एस्किमो जनजाति एवं मुस्लिम समुदाय में यह विवाह देखने को मिलता है| यह दो प्रकार का होता है | पहला साली बहु-पत्नी विवाह दूसरा गैर- साली बहु-पत्नी विवाह |

साली बहु-पत्नी विवाह (Sororal Polygyny)

जब एक पुरुष एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करता है एवं वे आपस में बहनें भी हों तो ऐसे विवाह को साली बहु-पत्नी विवाह कहते हैं |

गैर-साली बहु-पत्नी विवाह (Non-Sororal Polygyny)

जब एक पुरुष एक समय में एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करता है एवं वे स्त्रियाँ आपस में बहन न हों , तब इसे गैर-साली बहु-पत्नी विवाह कहते हैं |’

उपयुक्त के अतिरिक्त कुछ अन्य प्रकार के विवाह निम्न है –

साली विवाह (Sororate)

पत्नी की मृत्यु के बाद उसकी बहन से शादी करना साली विवाह कहलाता है |

देवर विवाह (Levirate)

पति की मृत्यु के बाद उसके भाई से विवाह करना देवर विवाह कहलाता है |

क्रमिक-एक विवाह (Serial Monogamy)

अपने जीवन साथी की मृत्यु के बाद जो विवाह किया जाता है, उसे क्रमिक एक विवाह कहते हैं |

अनुलोम एवं प्रतिलोम विवाह (Hypergamy and Hypogamy)

जब उच्च जाति के लड़के का विवाह निम्न जाति की लड़की से होता है तब इसे अनुलोम विवाह कहते हैं | यह सीमित एवं अपवाद स्वरूप मान्य है | इसके विपरीत जब निम्न जाति के लड़के का विवाह उच्च जाति की लड़की से होता है , तो इसे प्रतिलोम विवाह कहते हैं | यह सैद्धांतिक रुप से वंचित है|

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