सामाजिक डार्विनवाद| Social Darwinism in hindi

 

सामाजिक डार्विनवाद का सिद्दान्त

सामाजिक डार्विनवाद यह मानता है कि; मानवीय समूह एवं प्रजातियों पर प्राकृतिक चयन का वही नियम लागू होता है; जो चार्ल्स डार्विन जानवरों एवं पौधों के बारे में दिया था|

ब्रिटिश अर्थशास्त्री एवं समाजशास्त्री स्पेन्सर ने प्राकृतिक चयन का नियम जीव विज्ञान से हटकर समाज पर लागू किया| यह भी दर्शाया कि कैसे समाज एक समयांतराल में परिवर्तित होता रहता है|

सामाजिक डार्विनवाद और सावयवी अनुरूपता (Organic Analogy)

स्पेन्सर के अनुसार जिस प्रकार कोशिकाएं मानव शरीर का निर्माण करती है; उसी प्रकार व्यक्ति सामाजिक संरचना का निर्माण करता है| जिस प्रकार जीव की कोशिकाए आपस में मिलकर किसी विशिष्ट कार्य को सम्पादित करने के लिए; उतक अंगों का निर्माण करती हैं; उसी प्रकार व्यक्तियों का समूह मिलकर अपने सामूहिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए संस्थाओं का निर्माण करता है|

इन संस्थाओं के बीच प्रकार्यों के स्तर पर परस्पर निर्भरता का निर्माण होता है; जिसकी विशेषताएँ शारीरिक अंगों के जोड़ से अधिक होती है| इसलिए इसे अति-सावयवी (super-organic) कहा जाता है| यह अपने आप में स्वतंत्र एवं स्वायत्त होता है|

उपर्युक्त निष्कर्ष के बाद स्पेन्सर स्पष्ट करते हैं कि समाज व्यक्तियों का संग्रह मात्र नहीं होता है| अपितु उससे अलग एक स्वायत्त अस्तित्व होता है| स्पेन्सर यह भी मानते हैं कि मानव शरीर एवं मानव समाज में सादृश्यता या अनुरूपता (Organic Analogy) ही पायी जाती है; पूरी तरह समानता नहीं पायी जाती है|

स्पेन्सर के अनुसार समाज अंगों की तरह सरल से जटिल अवस्था की ओर बढ़ता है| स्पेन्सर ने जानवर के अंगों एवं समाज के अंगों में मुख्यतः तीन सदृश्यता पायी-

1. नियंत्रण व्यवस्था

जानवरों में केन्द्रीय नर्वस सिस्टम होता है; जो पूरे शरीर को नियंत्रित करता है|समाज में सरकार होती है; जो सभी कुछ नियंत्रित करती है|

2. संपोषणीय व्यवस्था

जानवरों में पोषण को देना एवं ग्रहण करना होता है| समाज में उद्योग होता है; जो नौकरी, पैसा आदि उपलब्ध कराता है; जिससे व्यक्ति का जीवन निर्वाह होता है|

3. वितरण व्यवस्था

जानवरों में यह नसों एवं धमनियों के माध्यम से संचालित होता है; जबकि समाज में सडकों, यातायात आदि द्वारा; जिनसे वस्तुओं एवं सेवाओं का वितरण होता है|

योग्यतम की उत्तरजीविता

स्पेन्सर ने अपनी पुस्तक Principles of Biology; में सर्वप्रथम डार्विन के प्राकृतिक चयन के स्थान पर योग्यतम की उत्तरजीविता (Survival of the fittest) के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया| जिसे बाद ने वालेस (Wallace) के सलाह पर डार्विन ने भी प्रयोग किया|

योग्यतम की उत्तरजीविता का तात्पर्य समाज में जो व्यक्ति शक्तिशाली है; जीवित रहता है; जबकि जो कमजोर है, वह समयांतराल में समाज से विलुप्त हो जाता है| इस आधार पर स्पेन्सर मानते हैं कि धनी एवं शक्तिशाली व्यक्ति समाज में इसलिए है; क्योंकि वे एक समय में सामाजिक एवं आर्थिक पर्यावरण के अनुकूल थे|

जैविकीय एवं सामाजिक उद्विकास

स्पेन्सर ने जैविकीय उद्विकास का उपयोग सामाजिक उद्विकास के सिद्धान्त की व्याख्या में किया| भौतिक उद्विकास का तात्पर्य; शरीर के अंग सरल से जटिल, समरूपता से विषमरूपता, समानता से असमानता की ओर बढ़ते हैं| जैविकीय उद्विकास का तात्पर्य; वही जीव जीवित रहता है जो शक्तिशाली हो; एवं पर्यावरण के साथ समायोजन स्थापित कर सके| इसे स्पेन्सर योग्यतम की उत्तरजीविता से संबोधित करते हैं|

स्पेन्सर आगे लिखते हैं की भौतिक उद्विकास के समान समाज भी सरल से जटिल की तरफ बढ़ता है; इसे वे चार उद्विकासीय समाजों के रूप में देखते हैं-

1. सरल समाज

2. मिश्रित समाज

3. दोहरा मिश्रित समाज

4. तिहरा मिश्रित समाज

इसे भी अवश्य पढ़ें

हरबर्ट स्पेन्सर का जीवन परिचय

स्पेन्सर का सामाजिक उद्विकास का सिद्धान्त

कॉम्टे का जीवन परिचय

विज्ञानों का संस्तरण

कॉम्टे का प्रत्यक्षवाद

समाज का पुनर्निर्माण

Leave a Comment

error: