सामाजिक परिवर्तन के सिद्धांत
(Theories of Social Change)

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सामाजिक परिवर्तन के सिद्धांत को मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया जा सकता है –

(1) रेखीय सिद्धांत (Lineal Theory)

(2) चक्रिय सिद्धांत (Cyclical Theory)

रेखीय सिद्धांत (Lineal Theory)

रेखीय सिद्धांत के अंतर्गत उन परिवर्तनों को शामिल किया जाता है, जो एक सीधी रेखा में एवं एक निश्चित दिशा में होता है| इसमें परिवर्तन के प्रस्थान बिंदु पर पुनर्वापसी नहीं होती है| मनुष्य के सामाजिक विकास की अवस्थाएं सामान्यतः रेखीय परिवर्तन के रूप में ही दिखाई देता है, जिसमें व्यक्ति एवं समाज से दूसरे उच्चतर अवस्था की ओर अग्रसर होता हुआ दिखाई पड़ता है| इस सिद्धांत के समर्थकों में ऑगस्त काम्टे (Auguste Comte) , कार्ल मार्क्स (Karl Marx), हरबर्ट स्पेन्सर (Herbert Spencer), थॉरेस्टीन वेबलेन (T. Veblen), एल.एच. मॉर्गन (L.H. Morgan) आदि सम्मिलित हैं|

चक्रिय सिद्धांत (Cyclical Theory)

चक्रिय सिद्धांत के अनुसार समाज का परिवर्तन एक चक्र की भाँति होता है| जिसमें एक के बाद दूसरा, फिर तीसरा और इसी प्रकार अन्य अवस्था के बाद पुनः पहले चक्र पर वापसी होती है| इसमे वही चक्र दोहराया जाता है| इस सिद्धांत के समर्थकों में सोरोकिन (Sorokin), पैरेटो (Pareto), टॉयनबी (Toynbee) एवं स्पेंगलर (Spengler) प्रमुख है|
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