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तलाक या विवाह-विच्छेद (Divorce)

Divorce (तलाक)

तलाक या विवाह-विच्छेद (Divorce) –

तलाक का तात्पर्य वैवाहिक संबंधों का टूट जाना है, जिसके परिणामस्वरूप वैवाहिक दंपत्ति एक दूसरे से हमेशा के लिए अलग हो जाते हैं एवं परिवार विघटन का शिकार हो जाता है| तलाक को कानूनी रूप देने के लिए विशेष विवाह अधिनियम, 1954 तथा हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में प्रावधान किया गया है|

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 हिंदुओं के साथ सिक्ख, इसाई, बौद्ध, जैन, पारसी पर भी समान रूप से लागू होता है|

इस अधिनियम के आधार पर निम्न परिस्थितियों में तलाक दिया जा सकता है-

(1) यदि दूसरा पक्ष व्यभिचारी हो|

(2) दूसरे पक्ष ने धर्म परिवर्तन कर लिया हो और हिंदू न रह गया हो|

(3) दूसरा पक्ष असाध्य कुष्ठ रोग या संक्रामक रोग से पीड़ित हो|

(4) दूसरा पक्ष सन्यासी होकर सांसारिक जीवन त्याग दिया हो|

(5) पिछले 7 वर्षों से दूसरा पक्ष जीवित न सुना गया हो|

(6) दूसरे पक्ष ने न्यायिक पृथककरण के 1 वर्ष या उससे अधिक अवधि के बाद तक पुनः सहवास न किया हो|

(7) पति बलात्कार, सोडोमी (Sodomy), जंगली व्यवहार (beastiality) का दोषी हो|

हिंदू विवाह अधिनियम,1955 में तलाक तथा न्यायिक पृथककरण में अन्तर

न्यायिक पृथककरण में एक निश्चित समय सीमा (1 वर्ष) तक पति एवं पत्नी को अलग रहने की आज्ञा दी जाती है| यदि दोनों अलग रहने पर मतभेद को भुलाकर फिर से साथ रहना चाहते हैं तो वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना की जा सकती है| जबकि तलाक में दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद न्यायालय द्वारा कानूनी रूप से विवाह संबंधों को समाप्त कर दिया जाता है|

तलाक के कारण (Causes of Divorce)

(1) पति या पत्नी में से किसी एक का व्यभिचारी होना|

(2) बेमेल विवाह हो जाने पर|

(3) गलत जानकारी देकर या किसी प्रकार का दबाव डालकर विवाह करने पर|

(4) दोनों पक्षों में से किसी की इच्छाओं के विपरीत विवाह कराने पर|

(5) विवाह के बाद परिवार में विवाद एवं कलह का अधिक होना|

तलाक के पक्ष में तर्क (Argument in favour of Divorce)

(1) पुरुषों की मनमानी पर अंकुश लगेगा|

(2) ऐसी असाधारण स्थित जिसमें पति एवं पत्नी दोनों किसी भी कीमत पर एक साथ न रहना चाहते हो, तब तलाक आवश्यक हो जाता है|

(3) तलाक का अधिकार होने से स्त्रियों एवं पुरषों को समानता का अधिकार प्राप्त हो जाता है|

(4) वैवाहिक जीवन का एक पक्ष मानसिक विकृति आदि से ग्रस्त हो तो ऐसे में तलाक एक विकल्प हो सकता है|

(5) दिन-प्रतिदिन के परिवारिक झगड़े, मारपीट से बच्चों पर बहुत ही नकारात्मक प्रभाव पड़ता है ऐसे में तलाक जरूरी हो जाता है|

तलाक के विपक्ष में तर्क (Argument against Divorce)

(1) हिंदू विवाह को एक संस्कार एवं सात जन्मो का रिश्ता माना जाता है, ऐसे में वर्तमान जीवन में इसे समाप्त करना भारतीय संस्कृति के अनुकूल नहीं है|

(2) तलाक के बाद परिवार विघटित हो जाता है, जिससे अकेलेपन से मानसिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं|

(3) तलाक के बाद बच्चों के पालन-पोषण की गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाती है|

(4) भारत जैसे पुरुष प्रधान समाज में अधिकतर स्त्रियां आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर हैं, ऐसे में तलाक के बाद उनके जीविकोपार्जन की व्यवस्था न होने से अनैतिक कार्यों में सन्लिप्तता जैसी समस्याएं उत्पन्न होती है|

(5) तलाक से समाज में नकारात्मक संदेश जाता है|

तलाक की रोकथाम के उपाय (Measures to prevent Divorce)

(1) विवाह से पूर्व लड़की एवं लड़के की राय अवश्य लेनी चाहिए|

(2) विवाह के बाद पति एवं पत्नी आपसी सामंजस्य, तालमेल की कोशिश करनी चाहिए|

(3) दोनों पक्षों को एक सकारात्मक एवं आध्यात्मिक साहित्य पढ़ना चाहिए|

(4) दोनों को भौतिकता के प्रति कम एवं भावनात्मक लगाव को अधिक महत्त्व देना चाहिए|

(5) बच्चों को बचपन से ही संस्कारी बनाना चाहिए ताकि तलाक जैसे मुद्दों के बारे में सोचने पर भी अपराध बोध महसूस करें|


8 thoughts on “तलाक या विवाह-विच्छेद (Divorce)”

  1. Radhanand Kumar Kamat

    तलाक़ के विषय पर बहुत ही सुंदर वाक्यों में आप के द्वारा वर्णन पढ़ने को मिला। आप का बहुत-बहुत धन्यावाद।

  2. बहुत ही अच्छा ब्लॉग है आपका मेरा विषय समाजशास्त्र है परंतु मैंने इसे इतनी सरलता से कभी नहीं पढ़ा।
    पहली बात मै यह कहना चाहूंगी कि कंटेंट बहुत सटीक और सरल और
    दूसरी मैं आपकी तारीफ ये करना चाहुंगी कि हिंदी बहुत अच्छी लिखी मिली बिना किसी वर्तनी कि गलती के।
    आप अर्थशास्त्र का भी ब्लॉग लिखें और करेंट के मुद्दों पर आप लिख है रहे हैं वह भी बहुत बेहतरीन है। धन्यवाद

    1. content jo sabko aasani se samajhme aa jay, likhne me thoda samay lagta hai, phir bhhi ab jaldi post karne ki koshis karenge, agar aapko specially kisi topic per matter chahiye to comment kare

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