सामाजिक स्तरीकरण एवं विभेदीकरण
(Social Stratification and Differentiation)


सामाजिक स्तरीकरण

सामाजिक स्तरीकरण व्यक्तियों का समूहों के आधार पर उच्चता एवं निम्नता के स्तर पर विभाजन है | सामाजिक स्तरीकरण में हम मुख्यतः असमानता (Inequality) का अध्ययन करते हैं | असमानता (भिन्नता) प्राकृतिक या जैविकीय (जैसे – जन्म से ही बच्चे में मानसिक विकार) भी हो सकती है सामाजिक भी | सामाजिक असमानता अगर व्यक्तिगत स्तर पर है तो इसे विभेदीकरण कहेंगे, सामूहिक स्तर पर भी है परंतु अस्पष्ट एवं अस्थिर है तब भी विभेदीकरण होगा | किन्तु यही सामूहिक असमानता जब स्पष्ट एवं स्थिर हो जाती है तब सामाजिक स्तरीकरण हो जाता है , जैसे – भारत में जाति एवं पश्चिमी समाजों में वर्ग|

रूसो (Rousseau) ने सर्वप्रथम सामाजिक एवं प्राकृतिक असमानताओं में अंतर करने का प्रयास किया | उनके अनुसार जैविकीय या प्राकृतिक असमानताएं प्रकृति द्वारा निर्धारित होती हैं, जैसे – उम्र, स्वास्थ्य, शारीरिक बल, गुण आदि | जबकि सामाजिक असमानता सचेष्ट या असचेष्ट प्रयास से समाज द्वारा निर्मित होती है |

प्लेटो एवं अरस्तु (Plato and Aristotle) ने प्राकृतिक असमानता को ही सामाजिक असमानता का कारक माना है |
जबकि आन्द्रे बेतेे (Andre Beteille) के अनुसार प्रकृति में कोई असमानता नहीं होती है, प्रकृति में केवल भिन्नता होती है |
मार्गन तथा अन्य उद्विकासवादियों के अनुसार आदिम समाज वर्ग विहीन समाज था, अर्थात् सभी असमानताओं से मुक्त समाज था |

इसके विपरीत कुछ मानवशास्त्री एवं समाजशास्त्री जैसे – मैरेट आदि मानते हैं कि अति आदिम समाजों में भी स्तरीकरण किसी न किसी रूप में विद्यमान था, चाहे वह उम्र एवं लिंग (Age and Sex) के आधार पर ही रहा हो |

वहीं सोरोकिन (Sorokin) के अनुसार अस्तरीकृत समाज, जिसके सदस्यों में वास्तविक समानता हो, एक मिथक है, जो मानवीय जीवन में कभी साकार नहीं हुआ है (Un-stratified society, with real equality of its members, is a myth, which has never been realized in the history of mankind.)

दो व्यक्तियों के बीच सामाजिक स्तरीकरण नहीं पाया जा सकता | दो समूहों के बीच हो सकता है | अतः सामाजिक स्तरीकरण के लिए कम से कम चार व्यक्तियों का होना अनिवार्य है|

यदि किसीे समूह का सदस्य बनना सभी के लिए खुला (अर्जित गुणों पर आधारित) न होकर बंद (प्रदत्त गुणों पर आधारित) हो तो ऐसे स्तरीकरण को बंद स्तरीकरण कहेंगे | इसके अंतर्गत दास, जागीर एवं जाति व्यवस्था शामिल है |जबकि वर्ग खुले स्तरीकरण का उदाहरण है|

सामाजिक स्तरीकरण में क्षैतिज भाजन (Horizontal division) होता है, जबकि सामाजिक विभेदीकरण में उदग्र विभाजन (Vertical division) होता है|

रेमण्ड मुरे (Raymond Murray) के अनुसार सामाजिक स्तरीकरण समाज का उच्चता एवं निम्नता की समाजिक इकाइयों में क्षैतिज विभाजन है (Social stratification is a horizontal division of Society into higher and lower social units)

पारसंस (Parsons) के अनुसार सामाजिक स्तरीकरण का अभिप्राय ऐसी सामाजिक व्यवस्था से है जिसमें व्यक्तियों (Individuals) का ऊँचे एवं नीचे पदानुक्रम में विभाजन है |स्तरीकरण का संबंध प्राथमिक रूप से तीन पक्षों से होता है –

(1) शक्ति (Power) (2) प्रतिष्ठा Prestige) (3) धन (Wealth)

टी. बी. बोटोमोर (T. B. Bottore) ने उद्विकासीय आधार पर स्तरीकरण को चार भागों में विभाजित किया-

(1) दास (Slave) (2) जागीर (Estate) (3) जाति (Caste) (4) वर्ग (Class)

स्तरीकरण के सिद्धांत (Theories of Stratification)

मार्क्स के सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धांत (Social stratification theory of Marx) – मार्क्स स्तरीकरण का संघर्षवादी सिद्धांत प्रस्तुत करते हैं| उन्होंने आर्थिक (संपत्ति या धन) स्थिति को स्तरीकरण का मुख्य आधार माना है | स्वामित्व के कारण ही मानव इतिहास में हमेशा दो वर्ग उपस्थित रहा है – पहला शोषक (Haves) एवं दूसरा शोषित (Have nots).

मार्क्स के अनुसार स्तरीकरण का निर्माण समाज के उत्पादन प्रणाली (Mode of Production) पर निर्भर करता है जिस समाज में उत्पादन प्रणाली जैसी होगी वैसा ही स्तरीकरण उस समाज में पाया जाएगा|

सोरोकिन (Sorokin) ने तीन आधार पर स्तरीकरण को दर्शाया है –

(1) आर्थिक (Economic) (2) राजनीतिक (Political) (3) व्यावसायिक (Occupational)

रॉल्फ डाहरेनडार्फ (Ralph Dahrendorf) ने अपनी पुस्तक क्लास एण्ड क्लास कनफ्लिक्ट इन इंडस्ट्रियल सोसाइटी (Class and class conflict in industrial society) में लिखते हैं कि स्तरीकरण का मुख्य आधार उत्पादन के साधनो पर नियंत्रण के होने या नहीं होने से है | इन्होंने स्वामित्व एवं नियंत्रण में विभेद किया है | वर्ग संघर्ष पूंजीपति एवं सर्वहारा के बीच न होकर सर्वहारा एवं सर्वहारा के बीच नियंत्रण के मुद्दे पर होगा |

मैक्स वेबर ने अपनी पुस्तक एकॉनमी एण्ड सोसाइटी (Economy and Society) में लिखते हैं कि जिस प्रक्रिया के द्वारा समाज में समूह निर्माण होता है उसी के द्वारा स्तरीकरण भी निर्मित होता है | वेबर ने समाज में समूह निर्माण के तीन आधार बताए हैं –

(1) वर्ग (Class) (2) प्रस्थिति (Status) (3) दल (Party)

वेबर के प्रस्थिति का तात्पर्य प्रस्थिति समूह से हैं, जैसे – जाति|

आंद्रे बेते ने अपनी पुस्तक कास्ट, क्लास एण्ड पावर (Caste, Class and Power) में वेबर द्वारा प्रदत्त दृष्टिकोण के आधार पर स्तरीकरण की चर्चा करते हैं | उन्होंने तमिलनाडु के श्रीपुरम (Sripuram) गाँव का अध्ययन किया एवं स्तरीकरण के तीन आधार बताएं –

(1) जाति (Caste) (2) वर्ग (Class)(3) शक्ति (Power)

किंग्सले डेविस एवं विलबर्ट मूर (Kingsley Davis and Wilbert Moore) ने अपनी पुस्तक सम सिपल्स ऑफ स्ट्रेटीफिकेशन (Some principles of stratification) में प्रकार्यवादी दृष्टिकोण के आधार पर स्तरीकरण की चर्चा की | उनके अनुसार स्तरीकरण सभी मानवीय समाजों में पाया जाता है (Stratification exists in every known human society)| 

डेविस एवं मूर के अनुसार प्रत्येक समाज के बने रहने के लिए कुछ अनिवार्य आवश्यकताएँ होती हैं, इसमें कुछ कठिन एवं चुनौतीपूर्ण कार्य होते हैं | इसके लिए कुछ प्रतिभावान व्यक्ति को आकर्षित करने के लिए विशेष प्रतिफल प्रदान किया जाता है, जिससे समाज का अनुरक्षण होता रहे | विशेष प्रतिफल से कुछ लोगों की वर्गीय स्थिति उच्च हो जाती है | इस तरह वे उच्चता एवं निम्नता में बँट जाते हैं | अतः सामाजिक स्तरीकरण द्वारा एकीकरण बनाए रखने का कार्य किया जाता है |डेविस और मूर के अनुसार स्तरीकरण सार्वभौमिक ही नहीं अनिवार्य है |

पारसन्स (Parsons) ने मूल्य सहमति (Value Consensus) को स्तरीकरण का आधार माना है| उन्होंने कार्यवादियों के इस बात को स्वीकार किया कि समाज के महत्वपूर्ण पदों पर विशेष व्यक्तियों को रखा जाता है| इन पदों को प्राप्त करने के लिए कुछ मूल्य होते हैं,जिस पर संपूर्ण समाज की सहमति होती है| जो इन मूल्यों के आधार पर कार्य करता है उसकी समाज में प्रस्थिति उच्च एवं उसे विशेष प्रतिफल मिलता है, एवं जो इससे अलग कार्य करता है उसे प्रतिफल नहीं मिल पाता| इस तरह मूल्य सहमति के आधार पर समाज में स्तरीकरण पाया जाता है|

स्तरीकरण की विशेषताएँ (Characteristics of Stratification)

(1) स्तरीकरण सार्वभौमिक होता है |

(2) यह सामाजिक-सांस्कृतिक होता है |

(3) ज्ञान के समाजशास्त्र के एक पक्ष को व्यक्त करता है |

(4) मानव निर्मित होता है प्रकृति प्रदत्त नहीं |

(5) समाज का उच्चता एवं निम्नता में विभाजन है |

(6) स्थिति एवं पद का वितरण होता है |

(7) अनेक समूह एवं उप-समूह में विभाजन है |

(8) प्रतिफल का असमान वितरण होता है |

सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप (Forms of Social Stratification)

विभिन्न समाजों एवं कालों में सामाजिक स्तरीकरण के विभिन्न स्वरूप देखने को मिलते हैं | विश्व के विभिन्न समाजों में स्तरीकरण के मुख्यतः दो स्वरूप पाए जाते हैं –

(1) जाति व्यवस्था (2) वर्ग व्यवस्था

(1) जाति व्यवस्था (Caste System) – प्रारम्भ में व्यवसाय एवं गुण के आधार पर स्तरीकरण का स्वरूप वर्ण व्यवस्था के रूप में था | कालांतर में यह जन्म पर आधारित हो गया, परिणाम स्वरूप वर्ण व्यवस्था जाति व्यवस्था के रूप में बदल गयी| धीरे-धीरे जाति की संख्या बढ़ती गयी और जाति की सदस्यता पूर्णतः अनुवांशिक हो गयी |जातियाँ मुसलमानों एवं ईसाइयों में भी पायी जाती है, लेकिन इसका स्पष्ट एवं कठोर रूप हिंदुओं में ही दिखाई देता है |

जैसा कि एम.एन. श्रीनिवास ने कहा है कि भारत में धर्म बदलना आसान है लेकिन जाति बदलना नहीं |मजूमदार एवं मदन (Mazumdar and Madan) ने जाति को बंद वर्ग कहा है (Caste is a closed class)| किंतु वर्तमान में स्तरीकरण के जातीय आधार में शिथिलता आयी है, एवं इसके स्थान पर व्यवसाय, धन एवं सत्ता का महत्त्व बढ़ता जा रहा है |

(2) वर्ग (Class) – इस स्तरीकरण का आधार आर्थिक है | इसमें व्यक्तियों की सामाजिक स्थिति जन्म से निर्धारित न होकर उसकी योग्यता, कुशलता, शिक्षा आदि के आधार पर निर्धारित होती है | व्यक्ति अपनी योग्यता या निर्योग्यता के आधार पर वर्गीय स्थित में उच्चता से निम्नता का स्थान प्राप्त करता है |

सामाजिक स्तरीकरण का महत्त्व या प्रकार्य (Functions or Importance of Social Stratification)

व्यक्ति के लिए –

(1) आवश्यकता की पूर्ति में सहायक

(2) शक्ति संतुलन

(3) सहयोग को बढ़ावा

(4) मनोवृत्तियों का निर्धारण

(5) व्यक्ति की प्रस्थिति एवं भूमिका का निर्धारण

(6) उत्तरदायित्व की भावना का विकास

समूह के लिए महत्त्व –

(1) श्रम विभाजन

(2) अनावश्यक प्रतिस्पर्धा एवं संघर्ष से रक्षा

(3) सामाजिक संबंधों का निर्धारण

(4) सामाजिक प्रगति

(5) सामाजिक मानदण्डो का पालन करने की प्रेरणा

सामाजिक विभेदीकरण (Social Differentiation)

विभेदीकरण में हम मुख्यतः भिन्नता का अध्ययन करते हैं | विभेदीकरण से तात्पर्य पेड़-पौधे, मनुष्य एवं अन्य जीव में पाए जाने वाले अन्तर से है | एक ही प्रजाति के व्यक्ति या पेड़-पौधे भिन्न पर्यावरण में भिन्न विशेषता धारण करते हैं | इसी तरह विश्व का प्रत्येक समाज भी एक दूसरे से कुछ न कुछ मात्रा में भिन्न है | इसके अतिरिक्त आयु, लिंग, प्रजाति, शिक्षा आदि के आधार पर व्यक्ति एवं समूह एक दूसरे से भिन्न हैं | इसे ही विभेदीकरण कहते हैं | किन्तु जब हम समूहों को गुणों एवं आवश्यकताओं के आधार पर कम या अधिक महत्त्व देने लगते हैं तो वह उच्चता एवं निम्नता में विभाजित हो जाता है | यह स्तरीकरण है|

लम्ले (F. E. Lumley) के अनुसार विभेदीकरण से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसमें विभिन्न व्यक्ति विभिन्नता उत्पन्न करते हैं, जिन्हें एक साथ रखने पर आर्केस्ट्रा के विभिन्न वादकों की तरह एक पूर्णतया समन्वययुक्त संपूर्ण की रचना होती है |

सामाजिक विभेदीकरण के प्रमुख रूप –

(1) जैव-सामाजिक रूप (Bio-social form) – इसके अंतर्गत लिंग-भेद, आयु-भेद एवं प्रजातीय-भेद आते हैं |

(2) सामाजिक- सांस्कृतिक रूप (Socio-cultural form) – इसके अंतर्गत धर्म, जाति, संस्कृति,रहन-सहन, व्यवहार, प्रथा आदि के आधार पर एक समूह के दूसरे से भिन्नता का अध्ययन किया जाता है |

(3) आर्थिक रूप (Economic form) – व्यवसाय के आधार पर व्यक्ति एवं समूह एक दूसरे से भिन्न होते हैं |

स्तरीकरण एवं विभेदीकरण में अंतर (Difference between Stratification and Differentiation)

(1) सामाजिक विभेदीकरण में व्यक्तियों एवं समूहों के बीच भिन्नता पायी जाती है, जबकि स्तरीकरण में समूहों के बीच भिन्नता के साथ उच्चता एवं निम्नता का विभाजन पाया जाता है |

(2) सामाजिक विभेदीकरण में समूहों का स्थायी होना आवश्यक नहीं है, जबकि स्तरीकरण में स्थायी असमानता का होना आवश्यक है |

(3) स्तरीकरण एक वैयक्तिक प्रक्रिया है, जबकि विभेदीकरण अवैयक्तिक प्रक्रिया है (ओल्सन) |

(4) सामाजिक स्तरीकरण का संबंध उपयोगिता से है, इसके द्वारा योग्य लोगों को उच्च पद एवं सुविधाएं प्रदान की जाती है, जबकि विभेदीकरण उपयोगिता के आधार पर नहीं होता है |

(5) विभेदीकरण स्वतः एवं स्वाभाविक प्रक्रिया है, जबकि स्तरीकरण जागरुक एवं जानबूझकर अपनायी जाने वाली प्रक्रिया है |

Objective Type Questions


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