समाजीकरण से सम्बन्धित विभिन्न अवधारणाएँ

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समाजीकरण अपने समाज के मूल्यों एवं प्रतिमानों को सीखने की प्रक्रिया है| यह प्रक्रिया भिन्न-भिन्न समाजों में भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है| परम्परागत समाजों में समाजीकरण की प्रक्रिया अतीत की ओर अधिक झुकी होती है, जबकि आधुनिक समाज में यह भविष्य की ओर उन्मुख होती है| इसलिए परम्परागत समाज में व्यक्तियों में परिवर्तन के प्रति सकारात्मक रुझान देखने को नहीं मिलता जबकि आधुनिक समाजों में परिवर्तन के लिए तीव्र रुझान दिखायी पड़ता है|विभिन्न विद्वानों ने समाजीकरण से सम्बन्धित विभिन्न अवधारणाएँ दी हैं|

विभिन्न विद्वानों ने समाजीकरण की प्रक्रिया को कई वर्गो में विभाजित किया| जिसमें पारसन्स ने दो भागों – प्राथमिक समाजीकरण एवं द्वितीयक समाजीकरण, तथा समाजीकरण से जुड़ी अन्य अवधारणाओं – सामाजिक, असामाजिक, सामाजिक-विहीन, गैर-सामाजिक की चर्चा की| जबकि मर्टन भविष्य में समूह के सदस्य बनने के लिए प्रत्याशित -समाजीकरण की अवधारणा एवं सिमेल ने समाजीकरण के सादृश्य सामाजिकता की अवधारणा का प्रतिपादन किया|

पारसन्स (Parsons) ने समाजीकरण की प्रक्रिया को दो भागों में विभाजित किया –

(1) प्राथमिक समाजीकरण (Primary Socialization)

इसके अंतर्गत उन प्रक्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है जिसके माध्यम से एक बालक समाज का सहभागी सदस्य बनता है| बालक समाज के अपरिहार्य तथा न्यूनतम सांस्कृतिक तत्त्वों से अवगत होता है जिससे वह समाज में सामान्य सदस्य की भूमिका अदा कर सके| पारसन्स के अनुसार प्राथमिक समाजीकरण के लिए परिवार का होना अपरिहार्य (Inevitable) है|

(2) द्वितीयक समाजीकरण (Secondary Socialization)

इसके अंतर्गत वयस्क व्यक्ति के समाजीकरण से सम्बन्धित प्रक्रिया शामिल है, जो कि औपचारिक माध्यमों जैसे – स्कूल, यूनिवर्सिटी, जनसंचार आदि के द्वारा होती है| यह जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है| इसके लिए परिवार का होना अपरिहार्य नहीं है|

प्राथमिक समाजीकरण के द्वारा समाज का अनुरक्षण होता है जबकि द्वितीयक समाजीकरण के द्वारा समाज का विकास एवं परिवर्तन होता है|

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समाजीकरण से जुड़ी अन्य अवधारणाएँ जिसका प्रयोग पारसन्स ने किया है –

(1) सामाजिक-विहीन (Un-social) – पारसन्स ने इस शब्द का प्रयोग उन जीवों के लिए किया है, जिनमें समाजीकरण की क्षमता नहीं पायी जाती है, जैसे – पशु|

(2) गैर-सामाजिक (A-social) – मानव शिशु को पारसन्स ने गैर-सामाजिक शब्द से संबोधित किया| जिसमें समाजीकरण की क्षमता तो होती है लेकिन समाजीकरण नहीं हुआ है|

(3) सामाजिक (Social) – इसका तात्पर्य समाजीकरण की क्षमता के साथ-साथ जो समाजीकरण की प्रक्रिया का अंग बन गया है एवं जिसका प्राथमिक समाजीकरण हो गया है|

(4) असामाजिक (Anti-social) – नकारात्मक समाजीकरण को व्यक्त करने के लिए पारसन्स ने इस शब्द का प्रयोग किया| इसके अंतर्गत व्यक्ति समाज द्वारा अस्वीकृत व्यवहार को सीखता है|

प्रत्याशित समाजीकरण (Anticipatory Socialization)

यह मर्टन (Merton) की अवधारणा है| एक व्यक्ति जब किसी समूह का सदस्य नहीं रहता है एवं उसका सदस्य बनना चाहता है, ऐसे में वह उस समूह के मूल्यों एवं प्रतिमानों के अनुसार कार्य करने का प्रयास करता है तो इसेे प्रत्याशित समाजीकरण कहते हैं|

वि-समाजीकरण तथा पुनर्समाजीकरण (De-socialization and Re-socialization)

व्यक्ति जब समाज द्वारा अस्वीकृत व्यवहार को सीख लेता है एवं इससे मुक्त होना चाहता है तब इसके लिए नकारात्मक तत्त्वों की जगह सकारात्मक तत्त्वों को सीखना चाहता है, ऐसे में सर्वप्रथम वह सीखे हुए व्यवहार को समाप्त करने का प्रयास करता है| इसे ही वि-समाजीकरण कहते हैं| यह मूलतः एक भूलने (Un-learning) की प्रक्रिया है|

वि-समाजीकरण की प्रक्रिया के संपन्न होने के बाद सकारात्मक समाजीकरण के लिए व्यक्ति सक्षम हो जाता है और जब वह सकारात्मक सामाजिक तत्त्वों को सीखता है तो इसे पुनर्समाजीकरण कहते हैं| पुनर्समाजीकरण के माध्यम से व्यक्ति समाज अनुरूप व्यवहार को सीख लेता है|

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सामाजिकता (Sociation)

यह जॉर्ज सीमेल (George Simmel) की अवधारणा है| उन्होंने समाजीकरण केे सादृश्य इस नई अवधारणा का प्रतिपादन किया| इस अवधारणा के अनुसार मानव के बीच चेतन सम्बद्ध अंतःक्रिया होती है| यह चेतन सम्बद्धता प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न-भिन्न होने के कारण अन्तःक्रिया में भी भिन्नता दिखायी पड़ती है| जिससे विभिन्न प्रकार के सामाजिक प्रारूपों (Social Types) का जन्म होता है|

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