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Auguste Comte (अगस्त कॉम्टे)

Auguste Comte (अगस्त कॉम्टे)

                      

अगस्त कॉम्टे का जीवन परिचय

कॉम्टे का त्रिस्तरीय सिद्धान्त

अगस्त कॉम्टे (Auguste Comte) का जन्म 19 जनवरी, 1798 को फ्रांस के मोन्टपेलियर नामक स्थान पर हुआ|

कॉम्टे का पूरा नाम इसिडोर अगस्त मेरी फ़्रन्कोइस ज़ेवियर कॉम्टे था|

कॉम्टे के पिता लुइस कॉम्टे कर अधिकारी (Tax officer) थे| उनके पिता एवं माता रोज

ली बोयर कट्टर राज भक्त थी| जीवन के प्रारंभिक दौर में कॉम्टे माता-पिता के भावनाओं के कारण रोमन कैथोलिक को मानते थे| लेकिन बहुत ही जल्द कॉम्टे बौद्धिक रूप से प्रौढ़ता दिखाते हुए रोमन कैथोलिक धर्म की कट्टरता एवं राजतन्त्रवाद का विरोध करना प्रारंभ कर दिया|

प्रारंभिक शिक्षा मोन्टपेलियर में होने के बाद कॉम्टे ने 1814 में पेरिस के Ecole Polytechnique स्कूल में प्रवेश लिया| उन्होंने स्कूल के कार्यक्रमों में बढ़-चढ़ कर भाग लेना शुरू कर दिया| लेकिन इस स्कूल से वे कोई डिग्री प्राप्त नहीं कर सके| उन्हें उनके साथी मित्रों के साथ विद्रोही रवैया एवं राजनितिक विचारों के कारण स्कूल से निकाल दिया गया|

16 वर्ष की आयु में कॉम्टे ने एक व्याख्यान (lecture) दिया, जिससे उनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ने लगी|

अपनी स्कूली  शिक्षा के समय में कॉम्टे फ्रांसिसी चिन्तक बेंजामिन फ्रेंक्लिन से बहुत प्रभावित थे| कॉम्टे उन्हें आधुनिक सुकरात से संबोधित करते थे|

सन् 1818 में कॉम्टे तत्कालीन विचारक सेंट साइमन के संपर्क में आये| कॉम्टे की कार्य पद्धति एवं प्रतिभा से सेंट साइमन इतने प्रभावित हुए की उन्होंने कॉम्टे को अपना सचिव बना लिया| कॉम्टे की प्रारंभिक कृतियों में सेंट साइमन के विचार का प्रभाव दिखायी देने लगा| लेकिन फिर भी दोनों चिंतकों में मूलभूत अंतर था|

सेंट साइमन एवं कॉम्टे दोनों मानते थे की समाज का पुनर्गठन आवश्यक है| यह पुनर्गठन नैतिक, धार्मिक एवं राजनितिक व्यवस्थाओं का होना चाहिए| लेकिन सेंट साइमन सामाजिक व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन लाना चाहते थे| जबकि कॉम्टे सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए धीरे-धीरे परिवर्तन के आदर्श पर कार्य करना चाहते थे|

इसके अतिरिक्त सेंट साइमन आत्म अनुभूति पर अधिक बल देते थे, जिससे उनके चिंतन में वैज्ञानिकता का अभाव होने लगा| इन्ही विचारों के चलते सन् 1824 तक आते-आते दोनों के संबंधों में दरार पड़ना शुरू हो गया| यहाँ तक कि कॉम्टे अपने एक लेख Positive Physic में सेंट साइमन के क्रन्तिकारी आदर्शों की आलोचना तक कर डाला|

सन् 1825 में कॉम्टे का विवाह कैरोलिन मेसिन से हुआ| मेसिन का व्यवहार कॉम्टे के प्रति सकारात्मक नहीं था| वह कॉम्टे की आलोचक एवं झगड़ालू स्वाभाव की थी| इससे बचने के लिए कॉम्टे अपना अधिकांश समय लेखन कार्यों में देने लगे|

सन् 1826 में कॉम्टे ने 72 lecture की सीरीज प्रस्तुत करने का निर्णय लिया| इस व्याख्यान (lecture) में कॉम्टे ने प्रत्यक्षवाद (positivism) की रुपरेखा प्रस्तुत की| जो आगे चलकर उनकी पुस्तक में भी दिखायी पड़ता है| यह कॉम्टे का समाजशास्त्र विषय में दिया गया महत्वपूर्ण योगदान साबित हुआ| लेकिन 3 lecture के बाद नर्वस ब्रेकडाउन के कारण उन्हें व्याख्यान की सीरीज बंद करनी पड़ी| बीमारी के कारण उन्होंने 1827 में आत्महत्या का भी प्रयास किया|

सन् 1830 में कॉम्टे ने अपनी पुस्तक “The Course of positive philosophy” प्रकाशित किया| यह पुस्तक का प्रथम खण्ड था| यह पुस्तक छः खंडो में प्रकाशित हुई| अन्य पाँच खण्ड 1942 में प्रकाशित हुआ| इसी पुस्तक में कॉम्टे ने सामाजिक समस्याओं के वैज्ञानिक अध्ययन एवं समाधान के लिए नये विषय की आवश्यकता को रेखांकित किया|

इसी पुस्तक में कॉम्टे ने प्रत्यक्षवाद की अवधारणा की विस्तृत चर्चा की| बौद्धिक विकास का त्रिस्तरीय सिद्धान्त भी इसी पुस्तक में मिलता है| इस पुस्तक में कॉम्टे ने dependency of humanity को भी व्याख्यायित किया| पुस्तक के personal preface में कॉम्टे ने Ecole polytechnique स्कूल की तीब्र आलोचना की| जिसके कारण उनका इस संस्था का प्रोफेसर बनने का प्रयास विफल रहा|

पारिवारिक जीवन अत्यन्त दुःखमय एवं तनावपूर्ण रहने के कारण 1842 में कॉम्टे का उनकी पत्नी कैरोलिन मेसी से तलाक हो गया| तलाक के बाद भी कॉम्टे ने गहन चिंतन जारी रखा|

सन् 1844 में कॉम्टे एक चिंतनशील महिला Clotilde de Vaux के संपर्क में आये| इस महिला से वे बहुत अधिक प्रभावित हुए| कॉम्टे का महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण में भी परिवर्तन आया| वे अब महिलाओं की प्रशंशा करने लगे थे|

सन् 1846 में कॉम्टे की महिला मित्र Vaux की कैंसर के कारण मृत्यु हो गयी| Vaux की मृत्य से उन्हें बहुत आघात लगा| अब उनके विचारों में बृहद परिवर्तन आने लगा| कॉम्टे अब मानवता के विचारों पर ध्यान केन्द्रित करने लगे|

सन् 1851 में कॉम्टे की पुस्तक “System of Positive Polity” प्रकाशित हुई| यह पुस्तक चार खण्डों में है| इसका अंतिम खण्ड 1854 में प्रकाशित हुआ| इस पुस्तक से कॉम्टे के विचारों में व्यापक परिवर्तन स्पष्ट होने लगा| पहले जहाँ कॉम्टे ने समाज के पुनर्निर्माण के लिए वैज्ञानिकता को प्राथमिकता दी| वही इस पुस्तक में आध्यात्मिकता एवं नैतिक आदर्शों को प्राथमिक महत्त्व दिया|

मानवता के धर्म की व्याख्या कॉम्टे ने “System of Positive Polity” में ही किया| मानवता के धर्म के लिए कॉम्टे ने विरोधी विचारों एवं आचरणों के समन्वय पर बल दिया| सामाजिक पुनर्निर्माण की योजना में स्त्रियों को नैतिक शक्ति संचालन करने के लिए प्रमुख माना|

इस तरह हम देखते हैं कि कॉम्टे की दूसरी पुस्तक “Positive Polity” के विचार पहली पुस्तक “Positive Philosophy” से पूरी तरह भिन्न है| यही कारण है की दूसरी पुस्तक को विचारक कॉम्टे के बौद्धिक जीवन के पतन के रूप में देखते है|

कॉम्टे ने दिमागी शुद्धता (Cerebral Hygiene) का भी अभ्यास किया| इसके अंतर्गत उन्होंने अन्य विद्वानों की पुस्तकों को पढना बम्द कर दिया| इस दौरान वे कुछ महत्त्वपूर्ण विचारों का श्रृजन कर पाए| जो उनकी पुस्तक “Positive Polity” में दिखायी पड़ता है|

कॉम्टे की आर्थिक स्थिति जीवन भर ठीक नहीं रही| वे हमेशा आर्थिक तंगी में रहे हैं| यहाँ तक की कई बार उनके शिष्य चंदा इकठ्ठा कर उनकी सहायता करते थे|

सन् 1857 में कॉम्टे कैंसर की बीमारी से ग्रस्त हो गए| इसी कारण 5 सितम्बर 1857 को समाजशास्त्र के जनक का निधन हो गया| लेकिन समाजशास्त्र विषय की देन ने उन्हें लोगों के लिए अमर बना दिया| कॉम्टे की विचार शैली, रचना तथा स्मरण शक्ति असाधारण रही है|

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