मीड का समाजीकरण का सिद्धांत (Mead’s theory of Socialization)

[wbcr_php_snippet id=”362″ title=”before_post_ad_unit”]


अमेरिकी समाजशास्त्री एवं मनोवैज्ञानिक जी.एच. मीड (G.H. Mead) ने अपनी पुस्तक माइंड सेल्फ एंड सोसाइटी (Mind Self And Society) में समाजीकरण का सिद्धांत (समाजीकरण क्या है)  प्रस्तुत किया| मीड ने आत्म के विकास के लिए ‘मैं’ तथा ‘मुझे’ (I and Me), महत्त्वपूर्ण अन्य तथा सामान्यीकृत अन्य जैसी अवधारणाओं का प्रतिपादन किया| ‘मैं’ और ‘मुझे’ की अन्तःक्रिया के बीच स्वः का निर्माण होता है| महत्त्वपूर्ण अन्य का तात्पर्य प्राथमिक समूहों जैसे – परिवार से है, जबकि सामान्यीकृत अन्य का तात्पर्य द्वितीयक समूह से है| एक बालक समाजीकरण के दौरान तीन अवस्थाओं से गुजरता है –

(1) नकल की अवस्था (2) नाटक की अवस्था (3) खेल की अवस्था

‘मैं’, ‘मुझे’ एवं ‘स्व’ (I, Me and Self)

मीड ने भी कू़ले की तरह समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान दोनों दृष्टिकोण का समन्वय किया| कूले के आत्म दर्पण सिद्धांत पर अपना विचार आधारित करते हुए मीड ने ‘मैं’ और ‘मुझे’ की अवधारणा का प्रतिपादन किया| मीड के समाजीकरण के सिद्धांत में ‘मैं’, ‘मुझे’ एवं स्व: की अवधारणा का विशेष महत्त्व है| ‘मुझे’ (Me) का तात्पर्य समाज से हैं और ‘मैं’ (I) समाज का प्रतिउत्तर है| दूसरे लोग (समाज) मेरे बारे में क्या सोचते हैं यह ‘मुझे’ है, दूसरे लोग मेरे बारे में जो सोचते हैं, उस संदर्भ में मैं क्या सोचता हूँ, यह ‘मैं’ है और अंततः मैं अपने बारे में जिस निष्कर्ष पर पहुंचता हूँ, वह स्वः (Self) है|

महत्त्वपूर्ण अन्य (Significant Others)

महत्त्वपूर्ण अन्य का तात्पर्य व्यक्ति के प्राथमिक समाजीकरण हैं जैसे परिवार| महत्वपूर्ण अन्य के साथ एक बालक दो स्तरों से गुजरता है –
(1) नकल की अवस्था (2) नाटक की अवस्था

(1) नकल की अवस्था (Imitation Stage)

नवजात शिशु सर्वप्रथम अपने महत्वपूर्ण अन्य जैसे माता-पिता के संपर्क में आता है तथा वह अपने माता-पिता एवं भाई-बहनों की नकल करता है| इस अवस्था में बच्चे को अपने बारे में कोई जागरूकता नहीं रहती अर्थात स्व: का ज्ञान नहीं होता| वह निष्क्रिय रूप से भूमिका ग्रहण का कार्य करता है|

(2) नाटक की अवस्था (Play Stage)

यह अवस्था 2 वर्ष की उम्र से शुरू हो जाती है| इस अवस्था में शिशु ‘मुझे’ अर्थात् सामूहिक पक्ष से परिचित होता है| इस अवस्था में बालक स्वयं को व्यक्ति के रूप में न देखकर वस्तु के रूप में देखता है| वह नकल की अवस्था को पुनः दोहराने में सक्षम हो जाता है जैसे – डॉक्टर बनने का नाटक करना| यह अभ्यास महत्त्वपूर्ण अन्य के बीच ही होता है|

[wbcr_php_snippet id=”367″ title=”in_post_ad”]

सामान्यीकृत अन्य (Generalised Others)

परिवार से बाहर के सदस्यों को मीड सामान्यीकृत अन्य से संबोधित करते हैं| महत्त्वपूर्ण अन्य के साथ बालक जहाँ नकल की अवस्था एवं नाटक की अवस्था को पूरा करता है, वहीं सामान्यीकृत अन्य के साथ वह खेल की अवस्था (Game Stage) को पूरा करता है| कुछ बड़े होने पर बच्चा परिवार के अतिरिक्त अन्य लोगों के संपर्क में आता है, जैसे – स्कूल जाने पर वह अनेक भिन्नताओं से परिचित होता है| अपने तार्किक मस्तिष्क द्वारा इन भिन्नताओं में भी समन्वय स्थापित करने का प्रयास करता है| इस अवस्था में बालक व्यवहार के तरीके ही नहीं सीखता बल्कि व्यवहार के नियमों से भी परिचित होने लगता है| वह केवल भूमिकाओं का संपादन ही नहीं करता बल्कि अन्य की भूमिकाओं का पूर्वानुमान करने में भी सक्षम हो जाता है|

इसी अवस्था में बालक समाज के मूल्यों से परिचित होने लगता है| नकल एवं नाटक की अवस्था में बालक को प्रतिमानों(व्यवहार के तरीकों) से परिचित कराया जाता है, लेकिन खेल की अवस्था में वह मूल्यों से परिचित हो जाता है| बालक इस अवस्था में स्वयं के बारे में धारणाओं का संग्रह करने लगता है, परिणामस्वरूप वह स्वयं को अन्यों के समान ही नहीं भिन्न भी मानने लगता है, जिससे मैं(I) का निर्माण होता है|

‘मैं’ व्यक्ति की संवेदना है|समाज (मुझे) व्यक्ति के बारे में जो सोचता है, इस पर प्रतिक्रिया स्वरूप व्यक्ति अपने बारे में जो सोचता है, वह ‘मैं’ है| अब अंततः तार्किक विश्लेषण द्वारा व्यक्ति अपने बारे में जिस निष्कर्ष पर पहुंचता है वह स्व: है| ‘मैं’ और ‘मुझे’ के बीच निरन्तर अंतःक्रिया चलती रहती है तथा स्वः का निर्माण एवं पुनर्निर्माण होता रहता है| यही मीड के समाजीकरण का सिद्धांत है|

[wbcr_html_snippet id=”868″ title=”post_footer”]


[wbcr_php_snippet id=”364″ title=”after_post_ad_unit”]

2 thoughts on “मीड का समाजीकरण का सिद्धांत (Mead’s theory of Socialization)”

Leave a Comment

error: