विवाह (Marriage)


विवाह (marriage)

विवाह एक सार्वभौमिक एवं अनिवार्य संस्था है , जो प्रत्येक समाज में विभिन्न संस्कारों एवं कर्मकाण्डों द्वारा संपन्न किया जाता है | यह स्त्री एवं पुरुष को यौन संबंध स्थापित करने एवं बच्चों को जन्म की सामाजिक वैधता प्रदान करता है | विवाह पुरुष एवं स्त्री की प्रस्थिति (Status) को परिवर्तित कर उन्हें क्रमशः पति एवं पत्नी की प्रस्थिति प्रदान करता है | प्रस्थिति प्राप्त हो जाने से उससे जुड़ी कुछ कर्तव्य एवं भूमिकाएं भी निभानी पड़ती है | इसीलिए किंग्सले डेविस तथा बर्जेस एवं लॉक ने विवाह को भूमिकाओं की व्यवस्था (System of roles) कहा है |

बोगार्डस के अनुसार विवाह स्त्री- पुरुष को पारिवारिक जीवन में प्रवेश कराने की एक संस्था है |

Westermark ने अपनी पुस्तक हिस्ट्री ऑफ ह्यूमन मैरिज (History of Human Marriage) में लिखते हैं किपरिवार जैसी संस्था को बनाए रखने के लिए ही विवाह जैसी संस्था का जन्म हुआ है|

विवाह ऐसी संस्था है जिसमें समिति का पक्ष अनुपस्थित रहता है |

विवाह के नियम (Rules of Marriage)

किसी भी समाज या संस्कृति में विवाह को पूर्णतः स्वेच्छा पर नहीं छोड़ा जाता है ,इसके कुछ नियम प्रत्येक समाज में पाये जाते हैं | यह मुख्यतः दो प्रकार का होता है –

(1) बहिर्विवाह (Exogamy)
(2) अंतः विवाह (Endogamy)

(1) बहिर्विवाह (Exogamy)

बहिर्विवाह का नियम यह निश्चित करता है कि कुछ नजदीकी संबंधियों या नातेदारों के बीच यौन संबंध नहीं होने चाहिए | अतः यह नियम उस भीतरी सीमा का निर्धारण करता है जिसके बाहर ही किसी को विवाह की अनुमति होती है , जैसे परंपरागत रूप से हिंदुओं में सपिण्ड एवं गोत्र से बाहर विवाह की मान्यता है अपने सपिण्ड एवं गोत्र में विवाह का निषेध किया गया है |

(2) अंतःविवाह (Endogamy)

यह नियम विवाह के बाहरी सीमा का निर्धारण करता है | इस सीमा के भीतर ही विवाह की अनुमति होती है| इसके बाहर विवाह नहीं किया जाता , जैसे – परंपरागत रूप से हिंदुओं में जाति के भीतर विवाह की इजाजत है ,जाति के बाहर अर्थात् दूसरी जाति में विवाह की अनुमति नहीं है |

विवाह के उद्देश्य

(1) कर्तव्यों का पालन |
(2) परिवार की स्थापना |
(3) यौन इच्छाओं की पूर्ति |
(4) धार्मिक एवं सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति |
(5) संस्कृति का हस्तांतरण |
(5) वैध संतानोत्पत्ति |

अमेरिकी मानवशास्त्री जी.पी. मर्डाक (G. P. Murdock) ने 250 समाजों का अध्ययन कर विवाह के निम्न उद्देश्य बताए हैं –

(1) यौन संतुष्टि (Sexual satisfaction)
(2) आर्थिक सहयोग (Economic cooperation)
(3) समाजीकरण (Socialization)
(4) बच्चों का लालन-पालन (Upgradation of children)

विवाह के प्रकार (Types of Marriage)

एक विवाह (Monogamy)

जब एक पुरुष या एक स्त्री वैवाहिक संबंध एक दूसरे तक सीमित रखता है तो उसे एक विवाह कहते हैं | तात्पर्य है कि एक स्त्री या पुरुष केवल एक बार विवाह करें तथा अपने जीवन साथी के रहते हुए दूसरा विवाह न करें, तब एेसे विवाह को एक विवाह कहते हैं |

बहु-विवाह (Polygamy)

एक पुरुष के एक से अधिक पत्नियां या एक स्त्री के एक से अधिक पति हो ,तब ऐसे विवाह को बहु-विवाह कहते हैं | यह दो प्रकार का होता है – बहु-पति विवाह एवं बहु-पत्नी विवाह |

बहु-पति विवाह (Polyandry)

जब एक स्त्री एक समय में एक से अधिक पुरुषों से विवाह करती है तो इसे बहु-पति विवाह कहते हैं, उदाहरण के लिए नीलगिरी की पहाड़ियों में रहने वाली टोडा एवं कोटा जनजाति , उत्तराखंड की खस जनजाति में यह विवाह पाया जाता है | यह दो प्रकार का होता है – भातृक बहु-पति विवाह एवं गैर-भातृक बहु-पति विवाह |

भातृक बहु-पति विवाह (Fraternal Polyandry)

जब एक स्त्री एक से अधिक पुरुषों से विवाह करती है , एवं सभी पुरुष आपस में भाई हों , तब इसे भातृक बहु-पति विवाह कहते हैं, जैसे टोडा एवं खस जनजाति में |

अभातृक बहु-पति विवाह (Non-fraternal Polyandry)

जब एक स्त्री एक समय में एक से अधिक पुरुषों से विवाह करती है एवं सभी पुरुष आपस में भाई न हों तब इसे अभातृक बहु-पति विवाह कहते हैं

बहु-पत्नी विवाह (Polygyny)

जब एक पुरुष एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करता है, तब ऐसे विवाह को बहु-पत्नी विवाह कहते हैं |

अफ्रीका की एस्किमो जनजाति एवं मुस्लिम समुदाय में यह विवाह देखने को मिलता है| यह दो प्रकार का होता है | पहला साली बहु-पत्नी विवाह दूसरा गैर- साली बहु-पत्नी विवाह |

साली बहु-पत्नी विवाह (Sororal Polygyny)

जब एक पुरुष एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करता है एवं वे आपस में बहनें भी हों तो ऐसे विवाह को साली बहु-पत्नी विवाह कहते हैं |

गैर-साली बहु-पत्नी विवाह (Non-Sororal Polygyny)

जब एक पुरुष एक समय में एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करता है एवं वे स्त्रियाँ आपस में बहन न हों , तब इसे गैर-साली बहु-पत्नी विवाह कहते हैं |’

उपयुक्त के अतिरिक्त कुछ अन्य प्रकार के विवाह निम्न है –

साली विवाह (Sororate)

पत्नी की मृत्यु के बाद उसकी बहन से शादी करना साली विवाह कहलाता है |

देवर विवाह (Levirate)

पति की मृत्यु के बाद उसके भाई से विवाह करना देवर विवाह कहलाता है |

क्रमिक-एक विवाह (Serial Monogamy)

अपने जीवन साथी की मृत्यु के बाद जो विवाह किया जाता है, उसे क्रमिक एक विवाह कहते हैं |

अनुलोम एवं प्रतिलोम विवाह (Hypergamy and Hypogamy)

जब उच्च जाति के लड़के का विवाह निम्न जाति की लड़की से होता है तब इसे अनुलोम विवाह कहते हैं | यह सीमित एवं अपवाद स्वरूप मान्य है | इसके विपरीत जब निम्न जाति के लड़के का विवाह उच्च जाति की लड़की से होता है , तो इसे प्रतिलोम विवाह कहते हैं | यह सैद्धांतिक रुप से वंचित है|

Objective Type Questions


6 thoughts on “<center>विवाह (Marriage)<center/>”

  1. आपके इस सहयोग को मैं अपने पूरे जीवन भर वरदान मानूंगा ।
    बिना किसी शुल्क के आपने इस एप्प के माध्यम से पता नही कितने लड़को का भला किया होगा ।

    आपसे आग्रह है कि कृपया इसे ऐसे ही निःशुल्क रखे , ताकि जिसके पास पैसो की कमी है ,वो भी अपनी पढ़ाई कर सके ।।।।

    आपका सदैव आभार…🙏🙏🙏🙏

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