संस्कार का तात्पर्य उन धार्मिक क्रिया कलापों से हैं जिसके द्वारा व्यक्ति शारीरिक, मानसिक रूप से विकसित होने के लिए कुछ करने को तैयार होता है एवं करता है| मनुस्मृति में कुल 13 प्रकार के संस्कारों की चर्चा है| हिंदू धर्म में कुल 16 (सोलह) संस्कार संपन्न किए जाते हैं|
हिंदू धर्म के 16 (सोलह) संस्कार
(1) गर्भाधान संस्कार – उत्तम संतान प्राप्त करने के लिए यह संस्कार करना होता है| स्त्री और पुरुष के शारीरिक मिलन को गर्भाधान कहते हैं| गर्भ स्थापना के बाद अनेक प्रकार के प्राकृतिक दोषों का आक्रमण होता है| यह संस्कार गर्भ को पवित्र करने के उद्देश से होता है इसलिए यह केवल प्रथम बच्चे के लिए किया जाता है| दूसरा महत्वपूर्ण उद्देश्य इससे पिता को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है|
(2) पुन्सवन संस्कार – यह संस्कार गर्भ के तीन महीने बाद किया जाता है| गर्भस्थ शिशु का मस्तिष्क इस समय विकसित होने लगता है| यह मान्यता है कि शिशु गर्भ में ही सीखना शुरू कर देता है| महाभारत के पात्र अभिमन्यु इसका उदाहरण है| इस संस्कार के माध्यम से पुत्र जन्म की कामना की जाती है|
(3) सीमांतोन्नयन संस्कार – इसके द्वारा दुष्ट तथा अमंगलकारी शक्तियों को गर्भ से दूर रखने का उपाय किया जाता है, साथ ही बच्चे में अच्छे गुण आये इसके लिए स्त्री को अच्छा व्यवहार करने तथा शांति एवं प्रसन्नचित रहने का ज्ञान दिया जाता है| यह संस्कार सामान्यतः गर्भ के चौथे एवं पांचवे महीने में किया जाता है|
(4) जातकर्म संस्कार – शिशु का जन्म होते ही यह संस्कार किया जाता है, इससे शिशु के कई प्रकार के दोष दूर होते हैं| इसके अंतर्गत शिशु को शहद एवं घी चटाया जाता है| इसके बाद नाभि की नाल काटकर माता को स्तनपान कराने के लिए दे दिया जाता है|
(5) नामकरण – इस संस्कार द्वारा बच्चे का नाम रखा जाता है| यह मान्यता है कि जिस तरह अच्छे कपड़े पहनने से व्यक्तित्व में निखार आता है उसी तरह अच्छा और सारगर्भित नाम रखने से संपूर्ण जीवन पर उसका प्रभाव पड़ता है|
(6) निष्क्रमण संस्कार – इस संस्कार के द्वारा बच्चे एवं माँ को प्रसूति गृह से निकालकर घर के अन्य भागों में जाने की अनुमति प्रदान की जाती है|
(7) अन्नप्राशन संस्कार – इस संसार के पहले तक शिशु केवल माँ के दूध पर आश्रित रहता है| इस संस्कार द्वारा बच्चे को अन्न प्रदान किया जाता है|
(8) चूड़ाकरण संस्कार – इसे मुण्डन संस्कार भी कहते हैं| इसके द्वारा गर्भ काल में उत्पन्न बच्चे के नाखून एवं केशों को निकाला जाता है|
(9) कर्णवेध संस्कार – इस संस्कार के द्वारा शिशु के कान को छेदकर उसे अलंकरण पहनाया जाता है| इससे श्रवण शक्ति बढ़ती है, और कई रोगों की रोकथाम होती है|
(10) विद्यारंभ संस्कार – जब शिशु शिक्षा ग्रहण करने योग्य हो जाता है तब जिस संस्कार के द्वारा उसे अक्षर ज्ञान कराया जाता है उसे विद्यारंभ संस्कार कहते हैं| इसमें बच्चे के मानसिक एवं बौद्धिक गुणों को विकसित किया जाता है|
(11) उपनयन संस्कार – इसे यज्ञोपवीत या जनेऊ संस्कार भी कहते हैं| बच्चा अपनी लंबाई के बराबर जनेऊ धारण करता है| इस संस्कार के बाद बालक द्विज कहलाता है| उपनयन संस्कार से बच्चे का दूसरा जन्म होना माना जाता है| यह संस्कार बच्चे का ब्रह्मचर्य आश्रम में प्रवेश करने का संस्कार है, तथा बच्चा इस संस्कार के बाद अपनी शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरु के समीप जाता है|
(12) वेदारंभ संस्कार – जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है यह संस्कार बच्चे के अध्ययन की शुरुआत के समय किया जाता है|
(13) केशांत संस्कार – इसे गोदान संस्कार भी कहते हैं| जब बच्चा एक निश्चित उम्र तक पहुंच जाता है तब उसके बालों को हटाने के समय यह संस्कार किया जाता है|
(14) समावर्तन संस्कार – यह संस्कार बच्चे के अपने गुरु के आश्रम से अपने समाज (घर) जाते समय किया जाता हैं| ब्रम्हचर्य आश्रम का यह अंतिम संस्कार है| इस संस्कार को विवाह संस्कार का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है|
(15) विवाह संस्कार – इस संस्कार के द्वारा स्त्री एवं पुरुष की प्रस्थिति बदल कर पति एवं पत्नी की प्रस्थिति हो जाती है| विवाह संस्कार के द्वारा व्यक्ति गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करता है|
(16) अंत्येष्टि संस्कार – यह अंतिम संस्कार है जिसे व्यक्ति की मृत्यु के बाद किया जाता है| यह संस्कार व्यक्ति के सांसारिक जीवन की समाप्ति का सूचक है| ऐसी मान्यता है कि इस संस्कार के द्वारा मृत आत्मा को शांति मिलती है|
मुसलमानों में संस्कार
मुस्लिम धर्म में सात प्रकार के संस्कार संपन्न किये जाते हैं –
(1) सतवाँ संस्कार – यह स्त्री के गर्भ धारण करने के बाद किया जाता है| जिसमें एक उत्सव का आयोजन होता है एवं बच्चे के लिए गीत आदि होते हैं|
(2) अकीका – यह नामकरण संस्कार है जिसमें बच्चे का कोई नाम रखा जाता है एवं उसके दीर्घायु के लिए दुआएँ माँगी जाती है|
(3) चिल्ला – बच्चे के जन्म के चालीसवें दिन माँ पवित्र हो जाती है और इसी दिन यह संस्कार मनाया जाता है| इसके द्वारा जन्म से संबंधित माँ की सभी अपवित्रता समाप्त हो जाती है|
(4) बिस्मिल्लाह – विद्यारंभ संस्कार को बिस्मिल्लाह संस्कार कहा जाता है| इस संस्कार के द्वारा बच्चे को अक्षर का ज्ञान कराया जाता है|
(5) खतना – इसे मुसलमानी संस्कार भी कहते हैं, जो सामान्यतः 3 से 10 वर्ष तक के बालक का किया जाता है| मुसलमानी लड़कियों की भी की जाती है| अरब तथा मिस्र को छोड़कर मुसलमानी प्रथा अब लगभग समाप्त हो गयी है|
(6) निकाह – निकाह का शाब्दिक अर्थ – स्त्री-पुरुष का संतानोत्पत्ति हेतु मिलन| इस्लाम में दो प्रकार के विवाह की मान्यता दी गयी है|(1) स्थायी विवाह (2) अस्थायी विवाह अथवा मूता विवाह|
(7) मैयत – यह मृत्यु के बाद तथा जीवन का अंतिम संस्कार होता है| इस संस्कार के तहत मृतक को नये कपड़े पहनाकर एवं कुछ सामग्री रखकर दफना दिया जाता है तथा अल्लाह से मृतक के लिए दुआएँ माँगी जाती है|