पुरुषार्थ (Purusharth)


पुरुषार्थ

पुरुषार्थ लोगों को समाज में क्रिया करने का मार्गदर्शन करता है| मनुष्य का उद्देश्य संसार में सुखी जीवन व्यतीत करना है| यह सब तभी संभव है, जब उसकी इच्छा एवं आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके|

पुरुषार्थ के प्रकार

हिंदू शास्त्रों में चार प्रकार के पुरुषार्थ यथा – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की चर्चा हैं| धर्म, अर्थ और काम को सामूहिक रूप से त्रिवर्ग कहा जाता है| हिंदू जीवन का अंतिम उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति है|

(1) धर्म

धर्म भारतीय संस्कृति का मूल है| विभिन्न परिस्थितियों में व्यक्ति के कर्तव्यों को धर्म कहा गया है| पंचतंत्र नामक ग्रंथ में कहा गया है कि धर्म मनुष्य को पशुओं से अलग करता है शास्त्रों में धर्म के मुख्यतः तीन प्रकार बताए गए हैं –

(i) सामान्य धर्म (ii) विशिष्ट धर्म (iii) आपद् धर्म

मनु स्मृति में धर्म के 10 लक्षण बताए गये हैं, यथा – धैर्य, क्षमा, संयम, अस्तेय (चोरी न करना), आंतरिक और बाह्य शुद्धि, इंद्रियों पर नियंत्रण, बुद्धि, विद्या, सत्य और क्रोध न करना| यह धर्म के 10 लक्षण हैं| स्पष्ट है कि धर्म के लक्षण व्यक्ति को एक निश्चित दायरे में रहकर कार्य करने का आदर्श प्रस्तुत करते हैं|

अधर्म

शास्त्रों में अधर्म की भी चर्चा है जिसके मुख्य रूप से पाँच प्रकार बताये गये है –

(1) विधर्म (2) परधर्म (3) धर्माभास (4) उपमा (5) छल

एक व्यक्ति का धर्म के विरुद्ध कार्य करना विधर्म है| अन्य व्यक्तियों के लिए निर्धारित कार्य को करना परधर्म है| निर्धारित नियमों के विरुद्ध कार्य करना उपधर्म या उपमा है इसे पाखण्ड भी कहते हैं| शास्त्रों के वचनों का दूसरा अर्थ कर देना छल है| मनुष्य अपने आश्रम से विपरीत जिसे धर्म मान लेता है, वह आभास या धर्माभास है|

(2) अर्थ

अर्थ का तात्पर्य धन से हैं| व्यक्ति को अपना घर गृहस्थी चलाने, सामाजिक दायित्व को पूरा करने, कर्मकाण्ड को करने के लिए धन की आवश्यकता होती है| धन के द्वारा व्यक्ति जीने की मूलभूत आवश्यकता – रोटी, कपड़ा, मकान से लेकर विलासिता पूर्ण जीवन शैली की पूर्ति करता है|

(3) काम

इसका शाब्दिक अर्थ इच्छा है| इसका तात्पर्य मनुष्य की मूलभूत प्रेरणाओं और इच्छाओं से है| एक मान्यता के अनुसार मनुष्य के इच्छाओं की तृप्ति होना आवश्यक है| इच्छाओं का दमन मोक्ष प्राप्ति में बाधा उत्पन्न कर सकता है|इच्छा कार्य करने की प्रेरणा देती है| अतः प्रत्येक कार्य के संचालन के लिए काम शक्ति का होना आवश्यक है| इसी के आधार पर व्यक्ति पारिवारिक एवं सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करता है| इस पुरुषार्थ को गृहस्थ आश्रम में संपन्न किया जाता है|

(4) मोक्ष

हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार मनुष्य के जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है| इसको प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को कठिन तप, ध्यान, मनन, चिंतन आदि करना पड़ता है| इसके माध्यम से व्यक्ति अज्ञानता रूपी सांसारिक मोह माया से मुक्त होता है एवं परमानंद की प्राप्ति करता है| मोक्ष प्राप्ति का अर्थ है व्यक्ति का जीवन मरण के चक्र से मुक्त होना है| धर्म, अर्थ और काम तीनों पुरुषार्थों का अंतिम लक्ष्य भी मोक्ष प्राप्त करना है|

मोक्ष प्राप्त करने के लिए मार्ग

मोक्ष प्राप्त करने के लिए भारतीय परम्परा में दो मार्ग बताये गए हैं –

(1) ज्ञान मार्ग (2) भक्ति मार्ग

ज्ञान मार्ग के अंतर्गत भारतीय दर्शन में शंकराचार्य ने अद्वैतवाद के माध्यम से इसकी चर्चा की है| उनके अनुसार माया रूपी अज्ञान हमें ब्रह्म की प्राप्ति में बाधा पहुँचाता है जैसे ही मनुष्य को ज्ञान प्राप्त होता है| अज्ञान हट जाता है एवं उसी क्षण उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है|जबकि भक्ति मार्ग के आधार पर रामानुज विशिष्टाद्वैत की व्याख्या करते हैं| उनके अनुसार मोक्ष के लिए भक्ति मार्ग है और मनुष्य को तब तक मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता जब तक उसे ईश्वर का अनुग्रह न प्राप्त हो जाय|

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