सामाजिक सीख तथा अनुकरण की प्रक्रिया
(Social Learning and Imitation Process)

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सामाजिक सीख (Social Learning)

यह सीखने एवं सामाजिक व्यवहार की प्रक्रिया है जो यह सुनिश्चित करता है कि नया व्यवहार अवलोकन एवं अनुकरण के पश्चात ही प्राप्त होता है| अवलोकन के अतिरिक्त सीख पुरस्कार एवं दण्ड से भी प्रभावित होता है जैसे – यदि किसी तरह के व्यवहार को हमेशा प्रशंसा एवं सराहना मिलती है तो व्यक्ति वैसा व्यवहार करने को प्रेरित होता है| इसके विपरीत यदि किसी व्यवहार की निंदा होती है तो ऐसे व्यवहार से व्यक्ति दूरी बनाए रखना चाहता है| इस तरह सामाजिक सीख मूल प्रवृत्ति न होकर व्यक्ति के अनुभव एवं प्रयत्न द्वारा उत्पन्न नया व्यवहार है|

बोआज के अनुसार -जीवन की सामान्य आवश्यकता को पूरा करने के लिए व्यक्ति जिस प्रक्रिया के द्वारा अनेक प्रकार की आदतें, ज्ञान और मनोवृत्तियों को विकसित करता है| उसी को हम सीख कहते हैं|

 

कोलविन के अनुसार अनुभव के द्वारा मूल व्यवहार में संशोधन हो जाना ही सामाजिक सीख है|

इस तरह सामाजिक सीख का तात्पर्य मनुष्य द्वारा सामाजिक परिप्रेक्ष्य में अनुभव एवं अवलोकन द्वारा व्यवहार को सीखना है| इससे व्यक्ति में नये व्यवहार का संचालन होता है|

सामाजिक सीख के व्यवहारवादी सिद्धांत के अनुसार सभी सीख शर्तों, सुदृढ़ीकरण (reinforcement) एवं दण्ड द्वारा मिलती है, जबकि बंडूरा(Bandura) के सामाजिक सीख सिद्धांत के अनुसार दूसरों की क्रियाओं के सामान्य रूप से अवलोकन द्वारा भी सीख मिल सकती है| व्यक्ति दूसरों को अवलोकन करके भी नये सूचना एवं व्यवहार को सीख सकता है| बंडूरा इसे अवलोकनात्मक सीख (Observational Learning) कहते हैं|

सामाजिक सीख निम्न तीन विशेषताओं पर आधारित है –

(1) व्यक्ति अवलोकन के द्वारा सीख सकता है|

(2) सीखने के लिए व्यक्ति की मन: स्थिति भी महत्त्वपूर्ण है|

(3) सीख व्यवहार में परिवर्तन लाये, यह आवश्यक नहीं|

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सीख की समाजीकरण में भूमिका (Role of learning in Socialization)

(1) सामाजिक सीख के माध्यम से ही व्यक्ति का समाजीकरण होता है|

(2) सीख के द्वारा व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन आता है|

(3) समय के साथ सामाजिक सीख और भी परिष्कृत होकर अन्यों के लिए दृष्टि प्रदान करती है|

(4) सीख के द्वारा व्यक्ति सामाजिक मूल्यों एवं प्रतिमानों का अनुकरण करता है|

(5) सीख सामाजिक अनुकरण एवं समाजीकरण के लिए अाधार प्रदान करता है|

अनुकरण (Imitation)

प्रत्येक व्यक्ति का अधिकांश व्यवहार दूसरे व्यक्तियों के व्यवहार का अनुकरण है| एक बच्चा आरम्भ में अपने माता-पिता एवं परिवार के सदस्यों के व्यवहारों, कार्यों का अनुकरण करता है, जैसे-जैसे व्यक्ति बड़ा होता जाता है, वह अन्य समूहों के संपर्क में आता है जिससे उसके अनुकरण की क्षमता बढ़ती जाती है| इसलिए समाज में एक सामान्य आदर्श एवं नियम स्थापित हो जाता है, जिससे समाज में एकरूपता बनी रहती है|

कूले के अनुसार अनुकरण का तात्पर्य एक व्यक्ति द्वारा दूसरे के व्यवहार की नकल करना, चाहे यह नकल दूसरे व्यक्ति के व्यवहार को प्रत्यक्ष रूप से देखकर की गयी हो, किसी के कहने से कि गयी हो अथवा प्रगतिशील समाज की तरह पुस्तकों से पढ़कर की गयी हो|

अनुकरण को पूरी तरह नकल नहीं कहा जा सकता क्योंकि नकल हूबहू प्रतिविम्ब के रूप में होता है जबकि अनुकरण में कुछ तार्किक प्रक्रिया एवं सोंचना-समझना शामिल है|

अब प्रश्न उठता है कि अनुकरण व्यक्ति की मूल प्रवृत्ति है या सामाजिक सीख का परिणाम| इस बारे में कुछ विद्वानों का मानना है कि अनुकरण मूल प्रवृत्ति है जबकि अन्य का मानना है कि यह सीख का परिणाम है|

गैब्रियल टार्डे (Gabriel Tarde) के अनुसार प्रत्येक मनुष्य का व्यवहार मूल प्रवृत्ति के कार्यों का परिणाम होता है|

जबकि जी.एच. मीड (G.H. Mead) के अनुसार अनुकरण मूल प्रवृत्ति न होकर सामाजिक सीख का परिणाम है|

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टार्डे अपने अनुकरण के सिद्धांत में लिखते हैं कि समाज में अधिकतर व्यक्ति आविष्कारक नहीं होते बल्कि दूसरों की नकल करते हैं| टार्डे ने अनुकरण के तीन नियम बतलाए हैं –

(1) नजदीकी सम्पर्क का नियम (Law of close contact) – इसके अनुसार व्यक्ति उन्हीं व्यवहारों का अनुकरण करता है जो उसके आसपास के वातावरण में विद्यमान रहता है|

(2) अवर द्वारा उच्च का अनुकरण करने का नियम (The Law of imitation of superiors by inferiors) – इसके अनुसार गरीब या युवा धनी या अनुभवी व्यक्ति का अनुकरण करता है|

(3) सम्मिलन का नियम(The Law of insertion) – इसके अनुसार नये व्यवहार को पुराने व्यवहार पर थोप दिया जाता है, तात्पर्य है कि जब व्यक्ति नया व्यवहार सीख लेता है तो पुराने व्यवहार को त्याग देता है|

अनुकरण की समाजीकरण में भूमिका (Role of Imitation in Socialization)

(1) अनुकरण के द्वारा ही एक बच्चा समाज के मूल्यों एवं प्रतिमानों को आत्मसात् करता है जो समाजीकरण के लिए आधार प्रदान करता है|

(2) अनुकरण द्वारा समाजीकरण की प्रक्रिया तीव्र हो जाती है|

(3) अनुकरण के माध्यम से ही एक बच्चा समाजीकरण के दौरान अपनी संस्कृति को अन्यों से अलग कर पाता है|

(4) सम्पूर्ण समाज अनुकरण के परिणाम स्वरूप ही अस्तित्त्व में आता है|

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