Article 370 and 35-A of Jammu and Kashmir
(इतिहास, समस्या एवं समाधान)

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अनुच्छेद 370 जम्मू एवं कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करता है, जबकि अनुच्छेद 35-A वहां के निवासियों को संपत्ति खरीदने, सरकारी नौकरियों एवं अन्य सहूलियतों में विशेषाधिकार प्रदान करता है| इन विशेष प्रावधानों की आवश्यकता क्यों पड़ी? इसके लिए हम ऐतिहासिक घटनाक्रम को भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के लिए बनाए गए माउंटबेटेन प्लान से देख सकते हैं जिसमें रजवाड़ों (Princely States) को यह छूट थी कि वे भारत या पाकिस्तान में किसी के साथ जा सकते हैं या अपना स्वतंत्र अस्तित्त्व बनाए रख सकते हैं| इसी प्रावधान के तहत जम्मू एवं कश्मीर के राजा हरी सिंह ने स्वतंत्र रहने का निर्णय लिया एवं कश्मीर को स्विट्ज़रलैंड की तरह टूरिस्ट प्लेस बनाने का सपना देखने लगे|

कश्मीर ने अभी आजादी ठीक से महसूस भी नहीं की थी कि पाकिस्तान सेना समर्थित पस्तून कबिलाइयों ने अक्टूबर, 1947 में कश्मीर पर आक्रमण कर दिया उनका मुख्य लक्ष्य श्रीनगर था जहां से राजा हरी सिंह शासन करते थे| लेकिन संकट को भाँपते हुए राजा हरी सिंह श्रीनगर से जम्मू चले आये एवं 20 अक्टूबर 1947 को भारत से सैन्य मदद की गुहार की| भारत मदद के लिए तैयार हो गया, लेकिन सर्वप्रथम कश्मीर का भारत के साथ विलय की शर्त रखी| यह भारत के लिए आवश्यक भी था क्योंकि जब तक कश्मीर भारत का अंग नहीं बनता तब तक उसे सैन्य कार्यवाही अपने देश की सीमा से बाहर जाकर करनी पड़ती, जो तत्काल संभव नहीं था|

अतः राजा हरी सिंह ने भी स्थिति को समझते हुए 26 अक्टूबर, 1947 को अधिमिलन पत्र (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर कर दिए तथा 27 अक्टूबर को तत्कालीन भारतीय गवर्नर जनरल माउंटबेटेन ने भी इस पर हस्ताक्षर कर दिये और इसी दिन भारतीय सेना कश्मीर में दाखिल हुई और जल्द ही श्रीनगर के हिस्से को कबिलाइयों से मुक्त करा लिया गया, जबकि अन्य क्षेत्रों में युद्ध जारी रहा| भारतीय सैनिकों को सफलता मिल ही रही थी कि इसी बीच 1 जनवरी, 1948 को भारत ने जम्मू एवं कश्मीर के मामले को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गया|
सयुक्त राष्ट्र ने स्थिति का निरीक्षण करने के बाद एक प्रस्ताव पास किया जिसमें तीन महत्त्वपूर्ण बिंदु थे –

(1) पाकिस्तान से कहा गया कि वह कबिलाइयों एवं पाकिस्तानी सैनिकों को हटा लें तथा जम्मू एवं कश्मीर राज्य में युद्ध बंद कर दे|

(2) भारत से कहा गया कि वह सेना को हटाते हुए उतनी ही निम्न सीमा तक रखें, जिससे राज्य में कानून व्यवस्था बनी रहे|

(3) भारत से कहा गया है कि वह सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ एक सहयोगी कैबिनेट का राज्य में निर्माण करे, तथा संयुक्त राष्ट्र द्वारा सुझाए गये जनमत संग्रह(Plebiscite) प्रशासक नियुक्त करे, जो राज्य में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जनमत संग्रह करा सके|

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इस तीसरे बिंदु ने जनमत संग्रह की बात करके भारत को दो देशों के बीच एक पार्टी बना दिया जबकि जम्मू एवं कश्मीर का विलय तो भारत के साथ हुआ था| इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र का उपर्युक्त प्रस्ताव भारत एवं पाकिस्तान के लिए निर्देश नहीं, बल्कि सुझाव था| अत: पाकिस्तान ने प्रस्ताव को नजरअंदाज करते हुए युद्ध जारी रखा और कश्मीर के एक तिहाई (1/3) हिस्से पर अपना नियंत्रण कायम रखा|
इधर संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने दोनों मोर्चों पर यथा स्थिति के आधार पर सीमा निर्धारित किया ताकि जनमत संग्रह हो सके| इस सीमा को आज भी नियंत्रण रेखा LOC (Line of Control) के नाम से जाना जाता है| इस तिथि को कश्मीर के पाँच क्षेत्रों में से तीन क्षेत्र कश्मीर घाटी, लद्दाख एवं जम्मू भारत के नियंत्रण में था जबकि आजाद कश्मीर एवं गिलगिट-बलूचिस्तान पाकिस्तान के कब्जे में था| पाकिस्तान के कब्जे वाले इस क्षेत्र को आज भी पाक अधिकृत कश्मीर POK (Pak Occupied Kashmir) के नाम से जाना जाता है|

1 जनवरी, 1949 को भारत एवं पाक दोनों पक्षों द्वारा युद्ध विराम की घोषणा हुई ता कि जनमत संग्रह हो सके| यह कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र में जाने के बाद भारत की दूसरी सबसे बड़ी भूल साबित हुई| क्योंकि पाकिस्तान वास्तव में जनमत संग्रह चाहता ही नहीं था| अत:उसने इसके लिए कुछ शर्त रखी – जैसे जम्मू एवं कश्मीर के नेता शेख अब्दुल्ला यह आश्वासन दे कि उनकी पार्टी एवं जनता पाकिस्तान के पक्ष में मतदान करेंगे जो न तो शेख अबदुल्ला और न ही कश्मीर की आवाम को मंजूर था|

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पाकिस्तान की आधारहीन शर्तों के कारण जनमत संग्रह नहीं हो पाया| इधर भारत का संविधान पूर्णता की ओर बढ़ रहा था, किंतु कश्मीर के नेता शेख अब्दुल्ला एवं राजा हरी सिंह भारत में पूर्ण विलय नहीं चाहते थे| जम्मू कश्मीर के हालात अभी भी नाजुक थे| अत: सामान्य स्थिति (Normalcy) कायम करने के लिए भारतीय संविधान में जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत विशेष स्वायत्तता प्रदान करने की रूपरेखा प्रस्तुत की गई| संविधान के मुख्य निर्माता डॉ अम्बेडकर अनुच्छेद 370 के पक्ष में नहीं थे, इसलिए उन्होंने इसे ड्राफ्ट करने से इनकार कर दिया| तब गोपालस्वामी अयंगर ने इसे ड्राफ्ट किया एवं अनुच्छेद 370 को संविधान के 21वें (XXI) भाग में अस्थाई उपबंध के तहत स्थापित किया गया|
इधर समग्र कश्मीर में जनमत संग्रह पर पाक से बात न बनते देख यह निर्णय लिया गया कि भारतीय कश्मीर में चुनाव कराए जाय एवं चुनाव के उपरांत चुने हुए जनप्रतिनिधियों के माध्यम से विलय पत्र की पुष्टि (ratify) की जाय| चूँकि जनप्रतिनिधि जनता द्वारा चुने जाते हैं,अतः उनका निर्णय कश्मीर आवाम का निर्णय होगा| इसी क्रम में जून, 1949 में राजा हरी सिंह ने अपने पुत्र युवराज कर्ण सिंह को जम्मू कश्मीर का राजा बनाया| 1 मई, 1951 को राजा कर्ण सिंह ने चुनाव की घोषणा की| चुनाव में शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (J and K National Conference) पार्टी को सभी 75 सीटों पर विजय हासिल हुई तथा जम्मू एवं कश्मीर के संविधान निर्माण के लिए संविधान सभा का पहला अधिवेशन 31 अक्टूबर, 1951 को हुआ|

कश्मीर के राजा एवं शेख अब्दुल्ला अनुच्छेद 370 से संतुष्ट नहीं थे, वे और अधिक स्वायत्तता चाहते थे| इसी सिलसिले में वहां के वजीर-ए- आजम (प्रधानमंत्री) शेख अब्दुल्ला, 1952 में दिल्ली में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मिले एवं विशेष सहूलियत की मांग की| जिसे नेहरूजी ने मान लिया एवं दोनों के बीच हुई सहमति को दिल्ली समझौता (Delhi Agreement) के नाम से जाना जाता है| इसी समझौते के आधार पर 14 मई, 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने कैबिनेट की सलाह पर अनुच्छेद 370 1 (d) का उपयोग कर एक अध्यादेश के जरिये नया अनुच्छेद 35-A जोड़ा गया| 35-A वह अनुच्छेद है जिसने जम्मू एवं कश्मीर की विधानसभा को राज्य के स्थायी निवासियों को परिभाषित करने का अधिकार प्रदान किया| इसी आधार पर सन् 1956 में बने जम्मू एवं कश्मीर के संविधान में स्थायी नागरिकता को परिभाषित किया गया इसके अनुसार –
स्थायी नागरिक वह व्यक्ति है जो 14 अगस्त, 1954 में राज्य का नागरिक रहा हो या 10 सालों से राज्य में रह रहा हो, और उसने वहां कानूनी रूप से अचल संपत्ति हासिल की हो|

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35-A को भेदभावपूर्ण मानने का कारण

(1) अनुच्छेद 35-A जम्मू कश्मीर में अन्य भारत के लोगों को रोजगार प्राप्त करने एवं संपत्ति खरीदने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है, जबकि जम्मू एवं कश्मीर राज्य के निवासी को भारत में कहीं भी रोजगार प्राप्त करने एवं सम्पत्ति खरीदने पर कोई पाबंदी नहीं लगाता है|

(2) इस अनुच्छेद के अनुसार यदि जम्मू कश्मीर राज्य का कोई पुरुष राज्य के बाहर किसी लड़की से विवाह करता है तो उस लड़की को जम्मू कश्मीर राज्य की नागरिकता मिल जाती है, जबकि यदि कोई लड़की राज्य के बाहर के किसी लड़के से विवाह करती है तो उस लड़की की राज्य की नागरिकता समाप्त हो जाती है| इस तरह यह अनुच्छेद जम्मू कश्मीर राज्य का शेष भारत के साथ तो भेदभाव करता ही है,वहां की महिलाओं के साथ भी यह न्याय नहीं कर पाता|

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15, जो मूल अधिकार भी है, इसमें लिंग या जन्म स्थान (Sex or Place of birth) के आधार पर भेदभाव का निषेध किया गया है, जबकि अनुच्छेद 35-A दोनों आधार पर भेदभाव करता है|
संविधान का अनुच्छेद 13 कहता है कि राज्य कोई ऐसी विधि नहीं बनाएगा जो मूल अधिकारों को छीनती या न्यून करती है, साथ ही यह भी कि यदि कोई विधि बनाई जाती है तो ऐसी सभी विधियां उस मात्रा तक शून्य होगी जिस मात्रा तक वह मूल अधिकारों का उल्लंघन करती है| इस आधार पर अनुच्छेद 35-A स्वयं ही शून्य है, बस कोर्ट के मुहर की दरकार है|

यदि 35-A को वास्तविक मान भी लिया जाए कि जो 1954 से कश्मीर राज्य में रह रहे हैं वे वहां के स्थाई नागरिक हैं, तो 1990 में कश्मीरी पंडितों को कत्लेआम करके कश्मीर से बाहर क्यों निकाल दिया गया| वे तो 1954 के पहले से ही कश्मीर में रह रहे थे| इस पर देश का कानून मौन क्यों है? अपने ही देश में कश्मीरी पंडित आज भी शरणार्थियों की तरह जीवन व्यतीत कर रहे हैं, और बांग्लादेश के रोहिंगिया भारत में धीरे -धीरे स्थाई रूप से रहने लगे हैं| आजाद भारत में कश्मीरी पंडित गुलाम एवं रोहिंगिया आजाद है| यह कैसा न्याय है? भारतवर्ष के इतिहास में आज तक अनेक आक्रमणकारी आए यहाँ के क्षेत्रों को विजित कर शासन भी किया| कुछ अपनी बर्बरता के लिए कुख्यात भी थे, लेकिन किसी ने भी आम जनता का कत्लेआम इस आधार पर नहीं किया कि वे क्षेत्र को ही छोड़कर कहीं और चले जाएं, जैसा कश्मीरी पंडितों के साथ हुआ| 1990 में कश्मीर में मानवता के साथ जितनी बड़ी नाइंसाफी हुई थी, उसका इंसाफ देश की 25 हाईकोर्ट एवं एक सुप्रीम कोर्ट आज तक नहीं कर सकी है|

2014 में, वी द सिटीजन (We The Citizen) नामक गैर-सरकारी संगठन (N.G.O.) ने सुप्रीम कोर्ट में एक पिटीशन के माध्यम से कहा कि अनुच्छेद 35-A भारत की अखण्डता की भावना के विपरीत है, क्योंकि यह अन्य राज्यों के नागरिकों को जम्मू कश्मीर में रोजगार प्राप्त करने एवं सम्पत्ति खरीदने से रोकता है| साथ ही कश्मीर संविधान के मूल अधिकार 14, 19 एवं 21 का उल्लंघन है|

→  अनुच्छेद 370 के अनुसार संसद का, अनुच्छेद 368 द्वारा किया गया संशोधन जम्मू कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होता, जबकि भारतीय संविधान में कोई भी संशोधन बिना अनुच्छेद 368 में वर्णित प्रक्रिया के नहीं हो सकता, ऐसे में 1954 में, बिना अनुच्छेद 368 की प्रक्रिया के 35-A को कैसे जोड़ दिया गया|

अनुच्छेद 370 – अनुच्छेद 370 के कारण भारतीय संविधान के अनेक उपबंध जम्मू कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होते, जो मुख्यत: निम्न है –

(1) जम्मू कश्मीर के संदर्भ में संसद की अधिकारिता संघ सूची के विषय तक है, समवर्ती सूची के संदर्भ में नहीं|

(2) संसद जम्मू एवं कश्मीर राज्य के क्षेत्र, सीमा या नाम में परिवर्तन अनुच्छेद 3 के अनुसार नहीं कर सकता|

(3) अनुछेद 352 के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा आंतरिक अशांति के आधार पर की गयी आपात की घोषणा जम्मू कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होती|

(4) अनुछेद 365 के अधीन केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर राज्य को निर्देश नहीं दे सकता

(5) नीति निर्देशक तत्त्व जम्मू कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होते|

(6) अनुच्छेद 356 जम्मू कश्मीर पर वहां के राज्यपाल की सहमति से ही लागू होता है|

(7) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 द्वारा किया गया संशोधन जम्मू कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होता|

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अनुच्छेद 370 में संशोधन या समाप्ति के आधार

(1) अनुछेद 370 (1) (d) राष्ट्रपति आदेश द्वारा संसोधन कर सकता है (इसी के आधार पर 1954 में अनुच्छेद 35-A जोड़ा गया) साथ ही यदि आदेश अधिमिलन पत्र के विषय से संबंधित है तो वहां की सरकार के परामर्श से राष्ट्रपति आदेश का सकता है| चूँकि जम्मू एवं कश्मीर में इस समय राष्ट्रपति शासन है ऐसी स्थिति में राज्यपाल राज्य का प्रमुख होता है| अतः राज्यपाल की सिफारिश पर कोई भी संशोधन किया जा सकता है|

(2) अनुच्छेद 370 (3) में स्पष्ट लिखा है कि पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति लोक अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकेगा कि यह अनुच्छेद प्रवर्तन में नहीं रहेगा| इसमें परंतुक यह है कि ऐसी अधिसूचना निकालने के लिए राज्य के संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक है| चूँकि संविधान सभा 1957 में ही भंग कर दी गई थी, अतः राष्ट्रपति की अधिसूचना स्वयं ही लागू हो जानी चाहिए|

(3) संविधान के अनुच्छेद 249 के अनुसार संसद को राज्य सूची (State List) के सभी मामलों पर कानून बनाने का अधिकार है, यदि राज्यसभा दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव (Resolution) पास कर दे कि ऐसा करना राष्ट्रीय हित में आवश्यक है|

(4) 1965 से पहले जम्मू कश्मीर में प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति का पद होता था| 1965 में हुए छठें संविधान संशोधन द्वारा वजीर-ए-आजम (प्रधानमंत्री) एवं सदर- ए-रियासत (राष्ट्रपति) को बदल कर क्रमशः मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल कर दिया गया है| यही नहीं समय-समय पर अनेकों संशोधन द्वारा भारतीय संस्थाओं की अधिकारिता का विस्तार जम्मू कश्मीर राज्य पर किया गया है, जब इतने संशोधन हो चुके हैं तो अब उन आधारों पर क्यों नहीं हो सकता|

(5) विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का संविधान इतना पंगु नहीं होना चाहिए कि वह राष्ट्र हित में एक राज्य के कानून में संशोधन नहीं कर सकता|

(6) भारत के लिए संघ शब्द डॉ अम्बेडकर द्वारा सुझाया गया था, जिसके दो मायने हैं :

पहला – भारतीय संघ (Union of India) स्वतंत्र एवं सम्प्रभु राज्यों के बीच समझौते का परिणाम नहीं है|

दूसरा – राज्यों को संघ से अलग होने का अधिकार नहीं है| ऐसी स्थिति में जम्मू कश्मीर राज्य की स्वायत्तता एवं अलग व्यवस्था बेईमानी हो जाती है|

अनुच्छेद 370 स्थाई है या अस्थाई

(1) अगर अनुच्छेद 370 स्थाई होता तो इसे संविधान के अस्थाई भाग में क्यों जोड़ा जाता|

(2) अगर 370 को ड्राफ्ट करने वाले की भावना इसे स्थायित्व प्रदान करने की होती तो इसमें इसे समाप्त करने वाली धारा 370 (3) क्यों जोड़ी जाती|

कश्मीर समस्या का समाधान

अनुछेद 35-A संपत्ति के कानून के कारण 21 वी शताब्दी के वैश्वीकरण के इस दौर में भी जम्मू कश्मीर बाहरी निवेश से अछूता एवं कटा हुआ है| वहां के युवाओं को अच्छे शिक्षा के लिए राज्य से बाहर जाना पड़ता है जिसके लिए सभी आर्थिक रूप से इतने सक्षम नहीं हैं| निवेश न होने के कारण रोजगार के पर्याप्त साधन भी उपलब्ध नहीं है|अतः इसके लिए भी युवाओं को दूसरे राज्यों का सहारा लेना पड़ता है| दूसरे राज्यों के व्यक्ति द्वारा संपत्ति खरीद पर रोक के कारण वहाँ की संपत्ति का कौड़ियों के भाव में है| अतः किसी इमरजेंसी में वह अपनी जमीन का भी इस्तेमाल नहीं कर सकते| इस तरह ऐसा प्रतीत होता है, कहीं अनुच्छेद 370 एवं 35-A ही जम्मू कश्मीर के पिछड़ेपन एवं समस्या का कारण तो नहीं? यह विचारणीय प्रश्न है|

यदि अनुच्छेद 370 एवं 35-A को पूरी तरह समाप्त करना है तो वहां की स्थिति को समझना होगा| धारा समाप्त होते ही कुछ अलगाववादी रोजगार के अवसर के बजाय जम्मू कश्मीर की अस्मिता का हवाला देकर युवाओं की ऊर्जा को नकारात्मक गतिविधियों की तरफ मोड़ना चाहेंगे, जैसा कि फ्रांस की क्रांति के समय कहा गया था कि लोग मूर्ख पैदा नहीं होते हैं बल्कि शिक्षा द्वारा उन्हें मूर्ख बनाया जाता है| ऐसे में बेहतर होगा कि 35-A कानून में ही संशोधन किया जाए जैसे –

→   संशोधन द्वारा यह सुनिश्चित किया जाए कि जम्मू कश्मीर में बाहर के व्यक्ति केवल वाणिज्यिक उपयोग के लिए ही संपत्ति खरीद सकते हैं| साथ ही जिस क्षेत्र में वाणिज्यिक इकाई स्थापित की जानी है वहां के विधायक या सांसद की लिखित सहमति हो| सांसद या विधायक जनता के प्रतिनिधि होने के कारण विरोध भी नहीं होगा| धीरे-धीरे जब लोगों को रोजगार मिलने लगेगा, उनके संपत्ति का अच्छे दाम मिलने लगेंगे तो वे इसके पक्षधर हो जाएंगे तथा अन्य क्षेत्र के सांसद या विधायक तथा जनता अपने क्षेत्र में भी निवेश के लिए पहल करेगी| धीरे-धीरे कानून का विस्तार व्यक्तिगत संपत्ति खरीदने तक किया जा सकता है|

 यदि अनुच्छेद 370 एवं 35-A को एक झटके में समाप्त करना हो तो समाप्त करने से पहले ही जबरदस्त व्यवस्था करनी होगी: जैसे – अलगाववादी एवं सीमा पार आतंकवादी से कश्मीर अावाम का संपर्क न रहे| सोशल मीडिया तथा अन्य संचार साधनो पर कड़ी निगरानी रहे| LOC बॉर्डर पूरी तरह लेजर तकनीक से सील हो, ता कि सीमा पार से घुसपैठ न हो सके| युवाओं को अतिशीघ्र रोजगार के लिए वैकेंसी उपलब्ध हो| भले ही सभी को रोजगार न मिले लेकिन एक बार सभी एक साथ एक समान सकारात्मक उद्देश्य के लिए आगे बढ़ेंगे| युवाओं को सरकार द्वारा स्वरोजगार के लिए विशेष प्रोत्साहन दिया जाए| जब युवा व्यस्त रहेंगे तो किसी अन्य के बहकावे में नहीं आएंगे तथा वे अपने साथ-साथ जम्मू कश्मीर एवं देश की मुख्यधारा में शामिल होकर देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकेंगे|

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पाकिस्तान का कश्मीर पर दावा

कश्मीर की अधिकांश जनसंख्या मुस्लिम होने के नाते पाक उसे अपना मानता है, जबकि पाकिस्तान में शामिल होने की भूल पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) भी कर चुका था, जो 1971 में उससे अलग हो गया| 1954 में जम्मू कश्मीर की संविधान सभा ने भारत के साथ विलय की पुष्टि (ratify) की तथा वहां के संविधान के सेक्शन 3 के अनुसार जम्मू एवं कश्मीर राज्य भारतीय संघ का अभिन्न भाग है और रहेगा| (The state of Jammu and Kashmir is and shall be an integral part of the union of India ) साथ ही जम्मू एवं कश्मीर संविधान का सेक्शन 147, सेक्शन 3 में किसी भी तरह के संशोधन का निषेध करता है|

पाकिस्तान सीमा पार से आतंकवाद द्वारा जम्मू कश्मीर को अस्थिर करने की बार -बार कोशिश कर रहा है| जब तक पाक अधिकृत कश्मीर (POK) भारत का हिस्सा नहीं बन जाता, तब तक वह ऐसी कोशिश करता रहेगा| एक कहावत है कि किसी को बैठने की जगह दे दी जाए तो वह पैर फैलाने की कोशिश करता है| यही कोशिश पाक भी कर रहा है| सही तो यह होगा कि उसे बैठने ही ना दिया जाए| वैसे भी राजा हरी सिंह ने समग्र कश्मीर का विलय भारत में कियेे थे, साथ ही जम्मू कश्मीर के संविधान में विधानसभा की 111 सीटों में से 24 सीटें आज भी पाक अधिकृत कश्मीर (POK) के लिए रिक्त है, जिससे स्पष्ट है कि जम्मू कश्मीर के संविधान निर्माताओं की मूल भावना समग्र कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाने की थी, अत: हमें उस भावना का सम्मान करने की भी आवश्यकता है|
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